Tuesday, April 14, 2009

बे-इन्तेहाँ मोहब्बत

नहीं आते हैं
रस के लोभी
भंवरे
मान कर इसको
कली एक नाज़ुक
महकते हुए
फूलों की;

फना होतें हैं
ज़ज्बाती परवाने
जलती हुई
शम्मा पर
(क्युंकी)
होती है
बेइन्तेहाँ मोहब्बत
उनको… बस
रोशनी से………

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