Sunday, August 9, 2009

तुतक तुतक तूतिया...... हाय जमालो............

Tajurba किसे कहा जाय ? जब आपको वह ना मिले जिसकी आपने उम्मीद की थी, जिसके लिए आपने मनसूबे बनाये थे, तसव्वुर की थी.........और आपको कुछ और ही मिले. मेरा दोस्त मुल्ला नसरुद्दीन और मैं बहुत ही पोजिटिव सोचों वाले हैं.....हमारा रवैय्या हमेशा constructive ही रहता है. जैसे कि उस दिन मुल्ला सड़क पर गिर पड़ा, चोटें आई .....हमदर्दी जताने लगे लोग.....मुल्ला बोला: "अररे अररे !.. ...फ़िक्र की कोई बात नहीं, इस से भी बुरा हो सकता था, मैं तो गिरा था सड़क पर.....और कोई दौड़ता हुआ ट्रक आ जाता....आपका प्यारा दोस्त नसरुद्दीन खुदा को प्यारा हो जाता, उसकी बीवी बेवा और बच्चे यतीम हो जाते, आप लोगों का दिया हुआ क़र्ज़ डूब जाता.....शुक्र मानिए खुदा बंद ताला का जो मैं बच गया.....चोटों का क्या....वक़्त गुजरने के साथ मिट जायेगी."

जमालो काण्ड पर भी मुल्ला का खुलासा कुछ इस तरह था, "अफवाह फैलाने वालों से होशियार, यह सरासर झूठ है कि बुर्के को देख कर मैं बेहोश हो गया.....जी नहीं मैं तो मेडिटेशन करने लगा था ताकि फजीहत बेगम के लिए मेरे मन में कोई मलाल या नफरत ना रहे.....और मासटर ने कहा भी है कुछ भी हो जाये पोजिटिव सोचो, और मुझे भी तो मिसाल भी कायम करनी थी ना कि मेरा एक हज़ार गया मैं नोर्मल, मासटर का भी एक हज़ार गया उसे भी नोर्मल रहना है.....फिर सौ सुनार कि एक लोहार की....क्या तैरनेवाले कि बीवी बेवा नहीं होती ? जो एक्टिव होता है उसे ही नफा-नुकसान होता है.....इनएक्टिव लोगों को कुछ भी नहीं होता.....no gain without pain........वक़्त बताएगा--ऊंट किस करवट बैठता है."

मगर मुल्ला भीतर से बहुत भुनभुनाया हुआ था.....उसकी समझदानी (ब्रेन) खूब हरक़त में आ गयी थी.
चोर के घर मोर, मुल्ला को कैसे बर्दाश्त हो......मेरे पास आकर दुखडा सुनाने लगा.....मुझे उकसाने लगा, "अमां क्या पढ़े लिखे अहमक हो, एक इश्तिहार तक को ना समझ पाए.....हम तो बेवकूफ कहलाते हैं, तुम तो दिमाग वाले कहलाते हो, रोक देते हम को.....अपना भी हज़ार गवायाँ और हमें भी हज़ार का कर्जदार बना दिया." मुल्ला ने चालाकी से मेरे एक हज़ार के waiver की घोषणा कर दी थी.
फिर लगा कहने, "बड़े मनिज्मेंट एक्सपर्ट बनते हो.....बनाओ ना कोई बिजनस प्लान जिस से हमारे नुकसान की भर पाई हो.........उस फजीहत की फजीहत भी हो.....उसका तुतक तुतक तूतिया हाय जमालो हो जाये."
मुल्ला यह कह कर अपने पुराने तरीके से चाय सुड़कने लगा याने कप से सौसर में डाल महंगी दार्जिलिंग टी की ऐसी तैसी करने लगा था. मैंने सोचा, मुल्ला ने सोचा और........
कैच था--की सौदा का बेस ऐसा हो की कोई चेलेंज ना कर सके. इन्सान लालच या डर का शिकार होता है.....तो दूसरा कैच था लालच. जमालो ने खुद को establish कर लिया था.....मुल्ला जैसे सैंकडों बेवकूफ बन चुके थे.......'जमालो लिमिटेड' के नाम से कंपनी बन गयी थी, उसके शेयर भी इश्यु किये जा चुके थे....जमालो की बल्ले बल्ले थी.....यह सब मैंने खोज खबर ले ली थी.....चूँकि जमालो के इश्तिहार से उसके प्रोडक्ट का मैच हो रहा था याने बुर्का जिसमें होने से आप सब को देख सकते हैं, मगर कोई आपको नहीं.......इसलिए किसी की भी शिकायत कंजूमर फोरम पर नहीं टिक सकी थी. हम ने भी सोचा इसी की तरकीब से इसे मात दी जाये.......
एक गौरे को पकडा सलारजंग म्यूज़ियम के पास से, जिसके डॉलर ख़तम हो गए थे और फटेहाल था. नाम था उसका फ्रेडेरिक जॉन, अपना पुराना सूट उसे पहनाया और उसे साथ लेकर मुल्ला बाकायदा कारपोरेट कल्चर को निबाहते विथ appointment मिले जमीला मैडम से......कहा कि जॉन साहब जर्मनी में अनुसन्धान कर आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपेथिक सब तरीकों को साथ लेकर diabities, मोटापे, ब्लड प्रेशर, गुप्त-रोग इत्यादि के इलाज के लिए दवाएं बनायीं है......१०० गोलियों के पैक की कीमत 'फ्रेड-मुल्ला कंपनी' मात्र १०० रूपया लेगी........उसे आप इश्तिहार के जरिये आराम से ५०० रुपये में बेच सकेंगे.....चैन मार्केटिंग का सहारा लें तो और भी वारे न्यारे हो सकते हैं......बनाये हुए सर्टिफिकेट, बाबा कामदेव स्टाइल cd, पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन सब ने अपना कमाल किया......जमालो फंस गयी.....बारिश में भीगी नायिका और खूब नफा कमाए व्यापारी का मूड हमेशा अपबीट रहता है.....बोली जमालो, "मुनाफा अगर ना हुआ तो ?" मुल्ला बोला मुनाफा अगर ना हुआ तो आपका पूरा पैसा वापस. अग्रीमेंट तैयार हुआ जिसमें बाकायदा लिखा गया- "अगर इस डील में मुनाफा नहीं हुआ तो जमालो लिमिटेड को पैसा वापस." हाँ बीस लाख का आर्डर 'जमालो लिमिटेड' ने 'फ्रेड मुल्ला को.' को दिया और यह भी अस्योरंस ली कि यह प्रोडक्ट 'जमालो लिमिटेड' के इलावा किसी को नहीं दिया जायेगा....मुल्ला ने १० फीसदी अडवांस रखा लिया विथ आर्डर ......मुल्ला ने पहिला consignment १० लाख का भेज दिया, भुगतान ले कर......दवा कि जगह क्या था खुदा जाने शायद नीम, मैथी, अशोक छाल वगेरह 'सेफ' चीजों से गोलियां बनायीं गयी थी......कुछ माल बिका, मगर फिर टाँय टाँय फिस्स,
जमालो ने मुल्ला से क्लेम किया कि पैसा लौटाया जाय...... इसमें मुनाफा नहीं हुआ.....मुल्ला बोला मुनाफा हुआ है हमें, चार्टर्ड एकाउंटेंट से जाँच करालो......अग्रीमेंट में कहाँ लिखा है कि 'आपको' मुनाफा होना चाहिए......लिखा है, "अगर इस डील में मुनाफा नहीं हुआ तो जमालो लिमिटेड को पैसा वापस." .....और मुनाफा हुआ है......'फ्रेड-मुल्ला कंपनी' को इस डील में.......सो मैट्रिक पढ़ी जमालो को होश आ गया.......

मगर मुल्ला ने अब तक मेरे हज़ार रुपये और जॉन को पहनाया वह सूट मय टाई मुझे नहीं लौटाया है.....कहा जाता है कि मुल्ला अपनी महबूबा नम्बर १९ को लिए उस सूट में और महबूबा उस जमालो डिजाइनर बुर्के में........हैदराबाद के शोप्पेर्स स्टाप मॉल में दिखाई दिए......'ग्रैंड ककातिया-वेलकम' के
दम-पुख्त रेस्तरां में चांदी कवाब खाते दिखाई दिए......सुना है मुल्ला इस बार सीरियस है..... बोले तो....और मैं भी सीरियस हूँ.......तुलसीदास जी के यह वचन याद करता हूँ, "अब लौं नसेनी अब ना नसेहों" याने अब तक नाश किया अब नहीं करूँगा......

तो गाया जाय : तुतक तुतक तूतिया...... हाय जमालो............

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