Monday, April 19, 2010

सार्थक (आशु रचना)....

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कितना आसान है
कहना,
"I love you !"
"मैं तुम्हे प्यार करता हूँ !"
बना लेते हैं
कठिन
हम प्यार को
क्योंकि
हम 'होने' में नहीं
'करने' में
रखने लगते हैं
भरोसा,
लगते हैं
समझने
सार्थकता
अपने पूर्वाग्रही
मंतव्यों से
शब्दों और कलापों की,
काश हम
कर पायें
अनुभूति
प्रेम की ,
जो बस
होता है प्रेम
ना ही
सार्थक
ना ही
निरर्थक....

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