Tuesday, June 8, 2010

आश्वासन.....

बात दीवानी की :

उसका सोचने का तरीका कुछ ऐसा हो गया था:

# # #

"तुम्हारा आश्वासन
कई दिनों तक
आशा लगाये
रहता है कि
कोई मोड़,
कोई क्षण,
कोई अनुभव
इस साधारण
भीड़ से
अलग होगा.

लेकिन
समय का
हर पल
मेरे पहले
विश्वाश को
अदना करता
जा रहा है।"

इज़हार विनेश के :

मैंने टुकड़ों टुकड़ों में कुछ ऐसा ज़ाहिर किया था:

# # #

शिकवा है
मुझको कि
मेरा
आश्वासन
पा कर भी
देखती
रहती हो
तुम
भीड़ को....

मिलाती हो
तुलना
करती हो
परखती हो
भीड़ के
हवाले से,
मुझ को
खुद को
और
तेरे मेरे
इस
अबोले रिश्ते को.....

प्रिये ! क्यूँ
अधूरे पैमाने से
माप कर
मुझ को और
खुद को
किये
जा रही हो.
अदना.....

यह लम्हे
यह अनुभव
यह मैं
यह तुम
महज़
अपने हैं
सिर्फ
अपने,
ज़रुरत नहीं
इन्हें
भीड़ में
मिलाने की
भीड़ से
जुदा
करने की.....

हमें बस
जीये
जाना है,
जीये जाना है
भरपूर
खुशबुओं के
जवां लम्स को लिए....

मेरी जान !
क्यों
गिनने लगी हो
हर इक
धड़कन को
हर इक
नफस को....

(नफस=सांस, अदना=तुच्छ, लम्स=स्पर्श)

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