Thursday, January 5, 2012

सुबह का सूरज मिल कर देखें..

















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आओ साथी !
हम तुम दोनों,
सुबह का सूरज
मिल कर देखें,
निशा सुहानी बीत गयी है,
चद्दर छोड़ें,
नींद को तोड़ें,
दिवस का जीवन जीने हेतु
पुनः आज हम जगना सीखें .........

सूरज के प्रसरित प्रकाश में
ठहरे खिन्न मन से आकाश में
धरती के इस मृदुल हास में.
जाने देखें परखें साथी !
कितने रंग भरे है.....

काल सारथी मारे कोड़े,
दौड़ रहे सूरज के घोड़े,
थोड़े हर्षित व्यथित है थोड़े,
इन तुरंग मुखों से ही तो सारे
ग्रह नक्षत्र झरे हैं......

रंग नहीं पर रंग नृप है
शब्द नहीं पर शब्द कल्प है
रूप नहीं पर सौन्दर्य दर्प है
'होने' 'ना होने' के योग से
दर्शन समस्त उभरे हैं...

(कल्प का प्रयोग 'निश्चय' के अर्थ में किया गया है और दर्प का प्रयोग 'रोब' के अर्थ में किया गया है)

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