नज़रें तो मिल गयी थी मगर बात ना हुई.
महसूस हुआ हसीँ मंज़र खुद-ब-खुद
देखा किये चमन को महक साथ ना हुई.
आईने में देखा खिलता सा उनका अक्स
रूबरू उनके हो पायें हम औकात ना हुई.
सुनते रहे बादलों की गरज हर इक सांस में
तशनगी की तड़फ थी मगर बरसात ना हुई.
चाहत में लिखे थे हम ने अल्फाज़ अनगिनत
मना पायें उन्हें यारब नज़्म-ए-करामात ना हुई.
सोचा किये थे कहेंगे और पूछेंगे उनका हाल
दम भर हुए मुखातिब तलब-ए-सवालात ना हुई.
हाल-ए-तंगदिल हमारा वो कहते सुने गए
हो जाये असीर मोहब्बत कोई हवालात ना हुई.
उनके लिए जीते हैं मरते भी हैं उन पर
मौला इलावे हस्ती उनके कायनात ना हुई.
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