Sunday, December 18, 2011

बस थे देख्यो ,बस म्हे देख्यो ....

इसड़ो ना कोई
जीयो म्हानें
भावां में घुला
सबदा में बसा
मोत्या री लडियां ज्यूँ बरसा
हिवंडे रे आंगण में सरसा....

(जिया नहीं किसी ने
हमें ऐसा,
भावों में घुला कर,
शब्दों में बसा कर,
मोतियों की लड़ों सा बरसा कर,
अपने ह्रदय आँगन में सरसा कर..)

बात कैंया जाणू मैं आ,
क्यूं अणभूत म्हारी
मींची आंख्यां,
कुण सो ऐड़ो गून छुयो
जे चिपक गयी
म्हारी पांख्यां.....

(कैसे जान पाउँगा मैं यह,
क्यों की थी बन्द
मेरी अनुभूति ने
अचानक आँखें,
ना जाने किस गोंद ने
छू डाला था
चिपक गयी थी
मेरी पांखें..)

थे मुळकी ज्यो !
थे खुश रह्ज्यो !
थे गायीज्यो !
थे नाचीज्यो !
दुखड़ो थां ने ना सतावे कदै
दुनियां री सब बाधावां रळ
बिचलित ना कर पावै थां ने
थे पावो थां रो चिर आंको
राह- मजल मिलज्या थां ने ..

(मुस्कुरायियेगा आप !
खुश रहिएगा आप !
गायियेगा आप !
नाचियेगा आप !
कोई भी दुख ना सताए आप को !
दुनिया की सारी बाधाएं भी मिलकर
विचलित ना कर पाए आप को !
मिले आप को आपका चिर लक्ष्य
राह और मंजिल मिल जाये आपको ! )

ओ मन हरख्यो
ओ तन चह्क्यो
बागां रो हर खूणो मह्क्यो
सबद कैयां कैवे आ सब
बस थे देख्यो ,बस म्हे देख्यो ......

(यह मन हरषे
यह तन चहके,
ह़र कोना बगिया का महके ,
कह सकते कैसे
ये शब्द लाचार,
बस देखा आपने
बस देखा हम ने.....)

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