Thursday, July 1, 2010

दर्द....

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दर्द
बचाता है मुझे
जीवन की असंगतियों से
मिथ्या मैत्री से
झूठी सहानुभूति से
थोथे सामाजिक सम्मान से
मेरे आत्मिक शोषण से,
उन लोगों से जिनके लिए
रिश्ते केवल समय बिताने के साधन है

दर्द
रखता है निकट
मुझ को मुझ से
दिखाता है राह फिर
निज तक लौट आने की
निबाहता है निशि दिन साथ
इसीलिए मैंने उस-से
उम्र भर की मित्रता
निभाने की
प्रतिज्ञा की है.

कोई नाता मुझसे
जुड़ता है ‘दर्द’ का नाता बन
मैं झूमता हूँ
आह्लाद से
पाता हूँ स्वयं को
स्वयं के सत्व के सन्निकट
देखता हूँ परछाई अपनी उस दूसरे में
जो जुड़ जाता है मुझ से
मेरे आँसुओं में
अपने आँसू मिलाकर

.....

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