Thursday, July 22, 2010

अपेक्षा (दीवानी सीरीज)


उसने कहा था :

# # #
तुम्हारी
चार पंक्तियाँ
ह्रदय को
छू गयी....

तुम
प्रत्युत्तर की
मत करना
आशा,
अपेक्षा कोई
अच्छी चीज नहीं.....

.....................................................................................................................................
(एक समय था जब मैं भी कुछ इस तरहा सोच लेता था...हाँ वक़्त और तुज़ुर्बों ने बहुत कुछ बदल दिया है...अपेक्षाएं बहुत दुखी करती है...मगर ये सब भी 'phases' खुद को जानने और पहचानने के...आइये अपनी इस बहुत पुरानी बात को आप से शेयर करता हूँ, जो 'on face of it' बहुत सही लग सकती है किन्तु है नहीं।)

# # #
तुम ने
मेरे अल्फाज़ को पढ़ा
ना देखा
उन तूफानों को
जो हर लम्हा
मेरी आँखों में
उमड़ रहे थे....

शुक्र है
मेरे अल्फाज़
तेरे दिल को
छू सके,
प्रत्युत्तर तो
मिलना ही था,
वैसे तूफाँ
जवाबों का
इंतज़ार
नहीं करते....

फिर एक बार
शुक्रिया
नसीहत के लिए भी;
माना कि
अपेक्षा
अच्छी
चीज नहीं,
इन्सान के
जीने का
एक बहाना तो है....

इन्सान की
जिन्दगी का
आगाज़ भी
'अपेक्षा' है
और
आखिर भी,
यह ना हो तो
इन्सान
महज़
बेजान सा
खिलौना है एक
रबर का...


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