Thursday, July 1, 2010

एक सहज सी अभिव्यक्ति...

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अल्फाज़
नहीं कह पाते
जानम !
जो भी
हम को
कहना है,
दिल उनका
सुन लेता है
जो अनकहा
इस दिल को
कहना है..

आंसुओं का
कहें क्या
हमदम !
बरबस
उन्हें तो
बहना है,
दिल-ए-नादाँ
ही है
ऐसा
जिसको
सब कुछ
सहना है,
वज़ह यही
दिलबर मेरे !
हमने
मजबूरन,
लिबास
मौन का
पहना है..

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