Wednesday, July 7, 2010

घर और नदिया ..(दीवानी सीरीज)


मेरा उस शहर के एक इंस्टिट्यूट में 'एज ऐ गेस्ट प्रोफ़ेसर' जाना हुआ, जहां हम ने कुछ हसीन साल बिताये थे। एक theatre के बाहर उस से मुलाकात हो गई अचानक (सच में तो मैं उसे तलाश कर रहा था॥मगर अन्दर से, ऊपर से 'i don't care attitude' ही ओढ़ रखा था), हम दोनों मुस्कुरा दिए, साथ चलने लगे उस ने कहा :

बात दीवानी की...

# # #
चलो,
आज तुम्हे
अपना
घर
दिखा लाऊं....

दीवार पर लगी
काली पड़ गयी
अर्ध नग्न नारी की
पेंटिंग
धूल से भरा
और शायद
महीनों तक
पलटा नहीं गया
कैलेंडर
ऊपर रोशन-दान में
चिड़ियाँ का
घोंसला
जिसमें चिड़ियाँ
आज भी
अपने बच्चों के
साथ रहती है....

शायद
यही पल
तुम्हारे
पथरीले दिल
और
जिस्म पर
हरी दूब
उगा जाये.....

बात विनेश की...

मेरा दिल तो कर रहा था... साथ चल दूँ, मगर शायद मेरा मेल इगो मुझे रोक रहा था, और अकेले रहने की आदत भी...और यह आशंका भी की कहीं कोई नया सोपान ना शुरू हो जाये। मैने उसके हर लफ्ज़ को ध्यान से सुना, उसके बताये हुए के अनुसार घर की कल्पना भी की, और कहने लगा:

# # #
बहुत देर
हो गई
मुझे अब
जाना है
अपने घर
दूर देश में
जहां रहना
तुझको
गवारा ना हुआ था.

अर्ध-नग्न नारी की
तस्वीर
आज भी क्यों
मौजूद है
(तेरे) घर में
जिसको
तुम ने एक
सौंदर्यमूलक
कलाकृति
कभी ना
माना था
समझा था
मेरी
यौन-विकृति का
एक प्रतीक,
चिड़ियों की
दूसरी पीढ़ी
रह रही है
उसी
तिनकों से बने
घर में
जिसको मैं
बचा कर
रखता था
और
तुम उसे मेरे
छद्म आदर्शों का
दिखावा
समझती थी,
क्यों ना बदला
तुमने
वह पुराना कैलेंडर
जिसमें मेरे
लेक्चर्स की नोटिंग्स है
डिजिटल डायरी के दिए
तुम्हारे उपहार के
बावजूद.

मुझे मालूम है
तुम मुझसे आज भी
प्यार करती हो
और
मैं आज भी
चाहता हूँ तुझको,
मगर
हम दोनों
नदी के
दो किनारे हैं
जिन्हें दूरी बनाये रखने
और
एक दूजे से
जुड़ने को भी
जरूरत होती है
एक नदिया की....

शायद हम
साथ रहने के लिए
ना बने है
क्योंकि नदिया
सूख गई है.....





No comments:

Post a Comment