Saturday, July 28, 2012

मूल्यांकन .....

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है कैसी विडम्बना !
हो रहा है
राग के सन्दर्भ में
विराग का
मूल्यांकन,
राजपुत्र थे
बुद्ध और महावीर
अकूत दौलत थी
बहुमूल्य वस्त्र
अनगिनत आभूषण
राजमहल
हाथी घोड़े,
हम गिनाते नहीं थकते
वह वैभव और सम्पदा
जो उन्होंने छोड़े ,
परोसते रहेंगे
कब तक
भोग की चाशनी में
पगा कर
त्याग की बातें,
बन्द करो
ऐ अनुयायियों
यह प्रलाप,
कहीं दोनों की
अनुभूत देशनाओं को
अनजान में
अबाध भोग की
प्रतिक्रिया तो नहीं
बना रहे है आप,
नहीं था त्याग उनका
भोग से उत्पन हुई
विरक्ति कोई,
परे गए थे वे
भौतिक ऐन्द्रिक सुखों से,
हो कर चेतन,
है सत्य यही कि
संसारिकता की नीव पर ही
लहराता है
धर्म का केतन....

Sunday, July 15, 2012

सावन...

# # #
विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

बदरा उमड़े
हैं नयनों में,
रिमझिम रिमझिम
बरखा,
धुल गए हैं
मैल अंतस के
दिल ने दिल को
निरखा,
आगोश में लेकर
सूरज को
की है बादल ने
छावन,
विरह मिलन
दोनों के,
एहसास लिये है
सावन...

झर झर झरना
है नयनन में,
मन है
चंचल हिरना,
बांध रहा
सावन हरियाला
शांत
रवि की किरना,
प्रेम का मौसम
ऐसा मौसम
क्या ठंडक क्या
तापन,
विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

धरती के
मुखड़े मलिन को
सावन जल ने
धोया,
वृथा हुए
प्रपंच जगत के
ना पाया
ना खोया,
उजला सा
अस्तित्व सामने
सब कुछ है
मनभावन,
विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

Sunday, July 8, 2012

कोई और...

# # # #
भाव और बोल
गीतों के
मेरे ही थे
गा रहा था
कोई और...

बैठ कर
सुर-पंख पर
उड़ रहे थे स्वर
वेदना के,
आंसू मेरे ही थे
बहा रहा था
कोई और...

मैं फूल चमन का
खुशबू मेरी ही थी,
फिजाओं में
बाँट रहा था
कोई और..

रख दी थी नाव
नदिया पर
मै ने ही,
पतवार
चला रहा था
कोई और...

बिन देखे
बिन सुने
कर रहा था
साज श्रंगार
स्वप्न मेरे ही थे
देख रहा था
कोई और....