Sunday, October 14, 2012

सर्वोपरि उपलब्द्धि ...


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कहाँ गए 
वाद्य और संगीत
कहाँ गए 
वो मधुर बोल,
थक सी गयी है 
गीत की पांखें 
मुंदने लगी है 
थकी हारी आँखें,
रूठ से गए हैं 
स्वप्न सुहाने,
घेरने लगे हैं 
कोलाहल के बहाने, 
चल उड़ चल 
ओ वाणी के पक्षी 
करले बसेरा 
मौन के वन में,
होंगे तेरे संगी,
मौन की ध्वनि लिए 
लहरहीन सरिता, 
धरती को स्पर्श करता 
निशब्द सवेरा, 
शिशु तारे की अंगुली थामे 
चाँद को ढूंढती 
यह गूंगी सी 
सुरमई संध्या
और 
इन सब के बीच 
वो अनकहा सत्य 
जो है तुम्हारी 
सर्वोपरि उपलब्द्धि ...........

Friday, October 5, 2012

भ्रम.....


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ओ विजेता
जीवन समर के,
एक पराजित योद्धा है तू,
पाल लिए हैं
भ्रम जिसने
अचूक निशानेबाजी के,
उदारमना वीरता के,
विलक्षण मेधा के,
प्रभावी व्यक्तित्व के,
कितना मिथ्या है
तेरा अस्तित्व बोध,
सुन जरा !
सिसक रही है
इन शोर भरे
जयकारों के बीच
तेरी अपनी ही
चेतना
और
सम्वेदना,
रख दी है तुम ने
जिनके उदगम स्रोत पर
भारी भरकम
चट्टानें
अपने ही अहम् की....

रणछोड़....


# # #
नग्न खड़ी
युवा समस्याएं
अब नहीं
जगा रही कौतुहल
मेरे परिपक्व हुए
चिर युवा मानस में,
जानने लगा हूँ
अब
आमने सामने खड़ी
जीवन की विसंगतियों का सच,
ले ली है जगह
उत्तेजना
चुनौतियों
और
संघर्षप्रियता की,
शांति
सहनशीलता
और
मौन ने,
कायर नहीं
अजेय योद्धा हूँ
आज भी,
बस बन गया हूँ
स्वयं सचेत
रणछोड़
श्रीकृष्ण की
तरह......