Saturday, July 28, 2012

मूल्यांकन .....

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है कैसी विडम्बना !
हो रहा है
राग के सन्दर्भ में
विराग का
मूल्यांकन,
राजपुत्र थे
बुद्ध और महावीर
अकूत दौलत थी
बहुमूल्य वस्त्र
अनगिनत आभूषण
राजमहल
हाथी घोड़े,
हम गिनाते नहीं थकते
वह वैभव और सम्पदा
जो उन्होंने छोड़े ,
परोसते रहेंगे
कब तक
भोग की चाशनी में
पगा कर
त्याग की बातें,
बन्द करो
ऐ अनुयायियों
यह प्रलाप,
कहीं दोनों की
अनुभूत देशनाओं को
अनजान में
अबाध भोग की
प्रतिक्रिया तो नहीं
बना रहे है आप,
नहीं था त्याग उनका
भोग से उत्पन हुई
विरक्ति कोई,
परे गए थे वे
भौतिक ऐन्द्रिक सुखों से,
हो कर चेतन,
है सत्य यही कि
संसारिकता की नीव पर ही
लहराता है
धर्म का केतन....

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