Sunday, August 30, 2009

अपवाद पुरुष.........

दीवानी ने मेरी चुटकी ली थी उस दिन, कहने लगी थी आज एक बहुत ही धमाकेदार नज़्म लिखी है, जो कुछ नहीं बस हकीक़त है......

आप में से अधिकांश ने मोहब्बत की है मुखरित या मौन,'ऐसी' भी 'वैसी' भी। सो आप बखूबी जानते हैं कि ऐसे बेगुनाह संवाद आपस में होते ही हैं...बार बार मोहब्बत का इज़हार पाने के लिए......

बात दीवानी की............

मर्द
रेत पर पड़ी मछलियों की तरह
छटपटाते रहतें हैं
अपनी औरतों के भीतर
उतर जाने के लिए.......

जब होती हैं वे फ़ोन पर
किसी और से वार्तारत
रोक कर सांस रहते हैं
उनके संवादों को
सुनने की कोशिश में........

जब सोती हैं वे
घुस कर उनकी नींद में
देखते हैं उन्हें ख्वाब देखते हुए
डालते हैं विघ्न
जब कि स्वप्न में ही तो
रहता है इंसान पूरा आजाद.......

औरतें जब बावर्चीखाने में
मसरूफ होती हैं पकाने में
चुपके से जा बैठते हैं मर्द
उनकी रोज़मर्रा की
डायरियों में
और पढ़ते हैं उनकी
दिन भर की अंतरंगता को..........

उनके नाम आने वाले
खतों पर रखते हैं नज़र
जैसे जवान होती लड़की पर
रखतें हैं पड़ोसी...........

जब कभी वे जागती हैं
देर रात की फिल्मों की तरह
आधी रात तक
मर्द करवट बदलने के बहाने
आधी आँख से देखते हैं
उनकी सारी हरक़तों को.........

जब औरतें पढ़ती है
कोई ख़त
तब पढ़तें है मर्द
उनकी आँखों को बाक़ायदा
गलती से भी कभी अगर
निकल जाती है कोई ऐसी बात
उनके मुंह से जो
नहीं निकलनी चाहिए तब
खुल जाती है मर्दों की
तीसरी आँख
पलक झपकते ही...............

कुल मिलाकर
मर्दों के तीन चौथाई बसंत
कुम्हला जाते हैं
अपनी औरतों के पहरुआ बनने में
और एक चौथाई पतझड़ झड़ जाते हैं
गैर औरतों का तिलिस्म जानने में.............

फिर भी ना जाने क्यों
है मुझे यकीन कि
मर्दों की दुनिया में
कहीं ना कहीं
कभी ना कभी
मिलेगा जरूर कोई एक
'अपवाद पुरुष'..........................


बात विनेश की.......

मैंने उसके पहली रात मुल्ला के साथ पाकिस्तान के आये कवाल्लों के एक बहुत ही शानदार प्रोग्राम में लुत्फ़ लिया था अपने आज़ादी का....हुस्न और इश्क के सवाल जवाब ताज़ा ताज़ा जेहन में थे....मैंने लंच टाइम तक अपनी यह खूसूरत नज़्म उसके हाथ में थमा दी थी........

औरतें
पानी में होकर भी
रहती है मीन सी प्यासी.........

मर्द
जब भी गलती से
कर बैठता है किसी
अन्य नारी के रूप और गुणों का
सही आकलन
लगता है औरत को
जुड़ गए है तार 'उसके'
'उससे' कहीं,
बिना देखे आइना
समझ लेती है
खुद को बदसूरत
बिना जाने समझे
मान लेती है खुद को गुणहीन............

मर्द
जब किसी प्रेम कविता को पढ़कर
मुस्कुरा देता हैं मंद मंद
कनखियों से देख
औरत समझ लेती हैं
बन्दा गया काम से
तसव्वुर में ले आती है
हर उस कवियत्री को
जिसने गलती से कभी
अपने किसी महबूब के लिए
लिख डाली थी वो कविता
बस 'तेरे महबूब' की
ले लेता है जगह
'मेरा प्रियत्तम'
जलन की आग जला देती है
जेहन और तन-बदन.........

दफ्तर के किसी काम से
बैठता है मर्द
किसी क्लब या रेस्टुरेंट की
मेज़ पर किसी मोहतरमा के साथ
और दे देता है
यह खबर मेमसाब को
कोई नाकुछ बन्दा
घी मिर्च लगा कर,
उस कलयुगी हरिश्चंद्र की हर बात
लगने लगती है सांच
मर्द के सही एक्स्प्लानेशन भी
लगतें है महज़ शब्द जाल
सच्चा मर्द भी बन जाता है
उस दिन झूठों का सरताज
उस लम्हे से नहीं
अनन्त काल से..........

किसी पब्लिक गेदरिंग में
हिल स्टेशन
तीर्थ स्थान
रेलवे स्टेशन या
एअरपोर्ट पर
मिल जाती है कोई
पुरानी सहपाठिन
बहुत अन्तराल पर मिलने की
ख़ुशी झलक जाती है
बेचारे मर्द के चेहरे पर
याद कर लेती है
ज़िन्दगी की हमसफ़र
कोई बम्बईया फिल्म
मिल्स एंड बून या
गुलशन नन्दा का
हर उपन्यास...........

मदद कर देता है
मर्द
किसी आफतज़दा खातून की
महज़ हौसला अफजाई के अल्फाज़ या
माकूल मशविरों से
लगता है
जीवन साथी को
छूट गया है साथ बीच राह में
गाने को हो जाता है मजबूर
मर्द बेचारा
चल अकेला चल अकेला ................

शराफत के नाते
कर लेता है मर्द किसी
पुरुष या महिला मित्र से बातें
थोड़ी से ज्यादा
या लगा लेता है कहकहे
किसी और के लतीफों पर
हो जाता है शिकवा :
लिल्लाह ! ऐसा कभी हम से तो नहीं बतियाते
हो जाता है मुंह गुब्बारा सा
बीत जाती है सदियाँ
हवा की निकासी में.........

रिश्तों का यह थोथापन
देखते देखते
घबरा सा गया हूँ मैं
क्यों बनूँ अज़नबी
अपने ही घर में
चार दीवारों से बाहर भी
एक घर है
जिसकी कोई छत नहीं
कायम है जो
खुले आसमान के नीचे
नहीं बनना मुझे
किसी का भी
'अपवाद पुरुष'.............













Saturday, August 29, 2009

कसौटी आज की........

(Vishay aur prashan naye nahin hai.....maine swayam ne bhi apni rachnaon men aise patron par bahut kuchh kaha hai unko prateek ke roop men prayog karte hue, magar yah pahloo bhi yatharath hai.....aek vimarsh men yeh bindu kisi manishi ne vyakt kiye the...mere dil aur dimag ko chhu gaye...aaj kisi bat chit ke darmiyan sandarbh aaya, aap se share kar raha hun......)

क्या मिलना है
कुरेदने से
विगत के
कूड़े को........?
कहाँ मिलेगा
शम्बूक का सर
अंगूठा एकलव्य का ?
राम और द्रोण
कहलायें हैं
पुरुषोत्तम
नरोत्तम
अपने अपने
युगों के
परिपेक्ष्य में,
क्या होगा
हासिल
कसने से उन्हें
आज की कसौटी पर ?
झुठला देगा
आने वाला समय
आज के
आकलन को भी ,
कभी ना निपटेगा
ऐसे..............
कुंठाओं का
अंतहीन विवाद........

चाहिए..........(एक सरल कविता)

है इन्ही
क्षणों में
काल जयी क्षण
बस दृष्टि चाहिए........

है इन्ही
शब्दों में
परम शब्द
बस परख चाहिए.........

हैं इन्ही
सुरों में
अनहद
बस पहचान चाहिए......

है स्वयं में
ही
परमेश्वर
बस संज्ञान चाहिए.......

बन सकते हैं
हम
कुछ भी
बस अरमान चाहिए.......

खोल सकते हैं
हम
तन-मन-धन का
प्रत्येक रहस्य
बस अनुसन्धान चाहिए ........

Friday, August 28, 2009

बौझ.......

किया करती है
सहन
तराजू
वक़्त बेवक्त
सामग्रियों का
कमोबेश
बौझ,
मनाते हैं
कोई और ही
बेफिक्र हो
उन्ही सामानों से
मौज..............

राधा.......

राधा एक हकीकत थी या कल्पना....एक वास्तविकता थी अथवा विचार इस पर बहुत चर्चाएँ हुई है, जिन्हें मैं बुद्धि विलास का दर्जा देता हूँ. हमारे पास राधा के बारे में जो कुछ कहा गया, लिखा गया, समझा गया उसका विशाल आकार शब्दों के रूप में उपलब्ध हैं, जो प्रेम और भक्ति का एक विस्तृत एवम गहरा समंदर है....उसमें गोता लगाने से हमें प्रेम और अध्यात्म के अनुपम मोती हासिल हो सकते हैं.....बस हमें होना होगा, राधाकृष्ण मय. मैं यहाँ कतिपय वाक्य हम सब के ध्यान के लिए प्रस्तुत करना चाहता हूँ, आशा है आप भी कुछ पोस्ट्स राधारानी के विषय में यहाँ शेयर करेंगे.

१) "राधे तू बड़ भागिनी, कौन तपस्या कीन्ह, तीन लोक के नाथ जी अपने बस कर लीन्ह." राधा कृष्ण तत्वतः एक ही ज्योति है.
२) "बिन राधे कृष्ण आधे." श्री कृष्ण सालिग्राम है, तो चन्दन का तिलक श्री राधाजी है. जगत के आनन्ददाता श्री कृष्ण की वे आनन्ददायिनी शक्ति है. राधा श्री कृष्ण कि आह्लादिनी शक्ति है.
३) 'तुलसी' को भी राधा का स्वरुप माना गया है. कोई भी पवित्र जीवात्मा या वस्तु, चाहे वह वनस्पति ही क्यों ना हो, राधा का ही स्वरुप मानी जाती है. कृष्ण तुलसी कि माला वक्षस्थल पर धारण करतें हैं.
४) "आदि-माया" राधा का ही स्वरुप है. वह कृष्ण में मोह उत्पन्न करती है. माया का काम ही मोह उत्पन्न करना है. चूँकि राधा कृष्ण में मोह उत्पन्न करती है, इसीलिए सात्विक है, वन्दनीय है.
५) जैसा कि ऊपर कहा गया, राधा आह्लादिनी शक्ति है. यदि चित्त वृतियों में अनायास ही आह्लाद आ जाये, अर्थात उमंग या उल्लास आ जाये, या फिर सात्विक आनन्द का अनुभव हो, या कोई शुद्ध विचार या प्रेरणा अंतर से उठे तो ऐसी उर्जा को हम राधा का स्वरुप कह सकते हैं.
६) राधा कोई स्त्री विशेष नहीं, कोई भी जीवात्मा अपना सर्वस्व अर्पण कर, पूर्ण आत्मसमर्पण द्वारा 'आराधिका' या 'राधिका' या फिर 'आराधना' या 'राधा' कि उपाधि प्राप्त कर सकती है.
७) कृष्ण से पहले राधा का नाम आता है जैसे 'राधाकृष्ण' कहा जाता है 'कृष्णराधा' नहीं, कारण कि पहले आराधना में सिद्धि प्राप्त होगी तभी कृष्ण मिलेंगे.
८) राधाकृष्ण प्रेम है। प्रेम का प्रतीक है। भक्ति-गोपी है. पूरा संसार रास स्थली. वास्तव में जीवन का स्पंदन ही रास है. रास से अभिप्राय है हमारे स्वयं के इश्वर-स्वरुप का अनुभव, प्रभु का सानिध्य, उससे अद्वैत, एकीकरण, उससे मिलन और उसमें समा जाna.

मान्यताएं : जिज्ञासा.......

एक अरसे से
चलते चलते
मान्यताएं
क्यों
लगने लगी है
सच सी............?

सुविधाएँ हैं
मान्यताएं
बस साधन हैं वे
क्यों
जकडे रहतें हैं हम
उनसे फिर भी..............?

गगन है
निराकार
क्यों
गाड़े बैठे हैं हम
खंभे
दश दिशाओं के............?

सूरज
हर पल है
दैदीप्यमान,
क्यों
बंधे हैं हम
उसके उदय से
उसके अस्त से ...........?

नहीं है अस्तित्व
भूत एवम भविष्य का
शाश्वत है
केवल वर्तमान
क्यों
पोसतें हैं हम
भ्रम अपना
घटनाओं के सहारे.............?

शायरी..........

जुबां की ताक़त को
तोलने की
तराजू है शायरी
अलफाज़ के गठ्ठर में
चन्दन की
लकड़ी है शायरी...........

सच है सौ फी सदी
ना नयी है
ना ही पुरानी है शायरी
इन्सां के जिगर में
सुलगते अंगार की
दहकती सी
निशानी है शायरी......

गूंगे का गुड़ है
इल्म का है जरिया
दंगल का कोई
अखाड़ा नहीं है शायरी
दवा है रुह की
जिस्म की
खुराक नहीं है शायरी......

Monday, August 24, 2009

गोरखधंधा.....

अनुभव स्वयं के
ले आतें हैं हमें
समझ के बिंदु तक
छेह और नेह का
गोरखधंधा
समझा जाता है तभी.........

होते हैं जब हम
संबंधों में और
एकाकीपन में
संग संग
कर पाते हैं आत्मसात
शाश्वतता एकाकीपन की
बाँट पाते हैं खुशियाँ संबंधों में.........

है कैसी विडम्बना मेरे मन !
होते हैं हम जब जब संबंधों में
होना चाहते हैं हम एकाकी
जब होतें हैं हम एकाकी
खलता है एकाकीपन
तलाशते हैं हम
हो कर व्याकुल संबंधों को........

होते हैं विद्यमान
जब दो एकाकीपन
गहरे प्रेम में
बिना रचे कारा
एक दूजे के लिए,
होते हैं उपस्थित
छेह और नेह दोनों ही,
घटित होता है
कुछ बहुमूल्य........

Sunday, August 23, 2009

Words.........

Words
The creation of past
They wear
Apparel of past
Jewelery of past
Use cosmetics of past
Even their soul is from past
That is why
Very difficult it becomes
Describing the present in words
Expressing the moment in words
Words are really the
Incomplete translation of
Emotions..thoughts...vibrations
We use them
As we have to use them
There being
No other alternative
Available to communicate
With people at large....

Words are powerful
They are helpful
They are troublesome
Cannot be wholesome
Love cannot be uttered
Gratitude cannot be spoken
Words can never say the
Significant things of life
Only the silence
Can reflect that in vibes
Mind consist of words
Heart belongs to silence........

I love words
I love more
The silence
Virgin silence
Profound silence
Unbroken silence
I am in wait for
Becoming the silence.......

Saturday, August 22, 2009

आसमान...........

आसमान जो
तुम्हारे कमरे में है
वही तो है
महल में
झोंपडे में
मंदिर में
मस्जिद में
मयखाने में
कोठे में
अस्पताल में
बूचड़खाने में
यहाँ भी....वहां भी
उत्तर भी.... दक्षिण भी
पूरब भी.....पच्छिम भी
खुले में भी...बंद में भी......
एक वही तो है
बस में है जिसके
किसी भी
आकार प्रकार
माप परिमाप
रूप अरूप में
समा जाना
वैसा ही बन जाना
बिना कटे
बिना छंटे................

मुल्ला के खानदान के इतिहास का एक पन्ना......

मानव मनोविज्ञान के ऐसे उदाहरण आप कि नज़र में भी ज़रूर आते होंगे. जैसे लोग जरा फ्रेश-मूड में होते हैं या फुर्सत में और मकसद सामने वाले को खुश करना होता है या सामनेवाले को ज्ञान की घूंटे पिलाने की मनसा होती है या महफिल में अपनी धाक ज़माने कि तमन्ना होती है या....(लिस्ट लम्बी हो जायेगी इसलिए विराम) , तो वे खुद के माजी (past ) के बारे में गौरवपूर्ण (या) चंचल चपल (या) समझदारी से भरे (या) निरापद बेवकूफी/बदमाशी का कन्फेसन लिए कुछ स्टेटमेंट्स देने लगते हैं और सची झूठी कहानियां भी सुनाने लगते हैं... ....किसी खोयी हुई चीज जैसे कि पेन, बटुआ, चाभी इत्यादि के मिलने पर भी मन इतना हल्का हो जा सकता है कि-प्यार आया रे प्यार आये गायन फूट पड़ता है और चर्चा के विषय जरा intimate हो जाते हैं ,,,,,,,अंगूर की बेटी को अंगीकार करने पर भी ऐसी स्थिति घटित होती है....जैसे मेरे एक बंगाली प्रोफ़ेसर मित्र थे जो व्हिस्की के दो पैग तक सामान्य बात चीत की भाषा बोलते थे, तीसरे के साथ साहित्यिक बंगला, चौथे के साथ स्पेशल वाली हिंदी और पांचवा आधा हलक से उतरा कि नहीं अपनी पास्ट ग्लोरी का व्याख्यान आंग्ल भाषा में फरमाने लगते थे....
ऐसा ही हुआ था हमारे साथ, याने मुल्ला और मेरे दरमियाँ.....कहने का मतलब जमालो से संगीता दी के आशीर्वाद से २५०००/ ऐंठ लिए गए थे......मुल्ला कि बल्ले बल्ले थी....पैसे उसीके खीसे में रहे.....मैं ठहरा आदर्शवादी बुद्धिजीवी किसी ना किसी आदर्श कि आड़ में गलत तत्वों कि मदद भी करता हूँ और खुद को संत कायम रखने के लिए प्रतिफल को हाथ नहीं लगाता......मुल्ला ने सोचा कि उत्सव किया जाय....ले आये एक टीचर्स कि बोतल, सोडे और कबाब अपने लिए, रियल जूस के कार्टून मेरे लिए और चनाचूर मेरे लिए, नान तड़का और शाही पनीर दोनों के लिए......मेनू उनका वेन्यु मेरा....लदे फदे आन पहुंचे मेरे घर.....मेरे पर एहसान जताते हुए हो गए शुरू....पीनेवालों को पीने का बहाना चाहिए.....बस कुछेक पेग्स के बाद मुल्ला सातवें आसमान पर, ध्यान लग गया था उनका.....निकल आये थे ब्रहम वचन : अमां मासटर ! बड़ी रिसर्च करते कराते हो, अपनी बंश परंपरा कि डींगे हांकते हो.....जानते हो मैं ऐसा क्यों हुआ....जो अपने निशाने को हमेशा मद्देनज़र रख कर फल कि चिंता बिना किये कर्म करता हूँ ?" मुझे लगा था मुल्ला महाभारत कल में चले गए हैं, खुद को अर्जुन और मुझे कृष्ण देखने लगे हैं. मगर मैं गलत था. मुल्ला कह रहा था, "मेरे इतने जहीन और मतलबी होने के कारण मेरे जींस है जो मेरे पूर्वजों से मुझे मिले हैं.....हम लोग लड्डन मियां के वंशज है जिनसे सुलतान खाने जहां लोदी का साबका पड़ा था."
मेरे सांस में सांस आई, क्योंकि यह खबर उतनी सनसनीखेज़ नहीं थी जितना जशवंत सिंह जी का जिन्ना के लिए अपने ख़यालात लिख छोड़ना.....मुल्ला कुछ इधर ही ठहर गए थे, महाभारत काल से बहुत पहिले. उस दिन मुल्ला ने अपने खानदान के इतिहास का जो सुनहरा पन्ना मेरे सामने पढ़ा उसको आप से शेयर कर रहा हूँ.
दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी का सिपहसालार खाने जहां लोदी बहुत दरियादिल इन्सान था. एक दिन उसका वाकिफ लड्डन मियां सुबह सवेरे उनके दौलतखाने पर हाज़िर हो गया था, खुद पालकी में और पीछे पीछे उसका गधा. लड्डन मियां बोले, "आज तो खिचड़ी खाने का बड़ा मन हो रहा है. लोदी ने कहा---अच्छा खिचड़ी बनवा देता हूँ, तब तक तुम थोड़ा मिठाई खा लो. लड्डन बोला---- जिस नौकर को मिठाई लेने भेजो उस टुक मेरे पास भेज देना ताकि उसे मैं अपनी पसंद बता सकूँ. नौकर आया तो लड्डन मियां बोला---भई मिठाई रहने दो...जाने में तुम्हे तकलीफ होगी...बस यह पैसे मुझे दे दो और तुम जल्दी से खिचडी तैयार करवा दो. खिचडी खाकर लड्डन बोला---भई खिचडी तो गज़ब जायकेदार थी, मैं तो बहुत ज्यादा खा गया हूँ...पालकी में बैठूँगा तो पेट दुखेगा. खाने जहां ने कहा-----मियां अपने गधे पर चले जाईये. लड्डन मियां बोले----मेरा गधा तो कूदता बहुत है. इस पर खाने जहां ने अपने अस्तबल से एक तगड़ा सा अरबी घोड़ा माँगा दिया. लड्डन ने कहा---- इस घोड़े पर तो जीन भी नहीं कसी हुई है. लोदी ने हुकुम देकर उसी वक़्त चांदी की जीन घोड़े पर कसवा दी. लड्डन मियां घोड़े पर बैठते हुए बोला ---इस घोड़े को घर पहुँच कर वापस भिजवा दूँ या मैं ही रख लूँ ? खाने जहां मुस्कुराया----मियां आप ही रखलें इस घोड़े को, मैंने इसे आपको दे दिया. लड्डन मियां तुरत घोड़े से उतर पड़ा. लगा कहने------मैं इस कीमती जानवर को कैसे रख सकूँगा ? मेरे पास तो कोई नौकर भी नहीं. खाने जहां ने कहा---मियां आप नौकर रख लें उसकी पगार हम दे दिया करेंगे. लड्डन मियां ठहरे एक नंबर पाजी....लगे कहने----मैं घोड़े कि खुराक का इन्तेजाम कैसे करूँगा ? खाने जहां ने उसी समय अपने खजांची को हुक्म दिया कि घोड़े कि एक साल कि खुराक इसी वक़्त लड्डन मियां के घर भिजवा दी जाये. लड्डन मियांबोला ----मुझे हर साल घोड़े के साज़, जीन, खुराक और सईस के खर्चे के लिए आपके पास एक आदमी भेजना पड़ेगा, बार बार आपको तकलीफ देनी पड़ेगी. मुझे अच्छा नहीं लग रहा. इस से तो अच्छा है मुझे आप पूरा एक गांव ही बख्श दीजिये.
खाने जहां लोदी ने उसी वक़्त अपने दीवान को बुलाया और लड्डन मियां के नाम बदायूं जिले का एक गांव लिख दिया.
लड्डन मियां को तस्कीन कहाँ. लगे फिर कहने---मैं आया था खिचडी खाने, आपकी मेहेरबानी, एक घोड़ा और एक गांव का मालिक बनके जा रहा हूँ. लेकिन मेरी पालकी के कहार खाली हाथ वापस कैसे जायेंगे, मेरा गधा भी ऐसे कैसे जायेगा...यह तो आपकी शान के खिलाफ होगा. खाने जहां ने उसी समय पालकी के कहारों को कपडे रुपये इनाम में दिए और गधे के लिए भी माकूल इन्तेजामात कराये. लड्डन मियां ने खाने जहां लोदी को तीन बार झुक कर सलाम किया और अरबी घोड़े पर सवार हो कर चल दिया.

ऐसी ही जहीन, चालाक, लालची और ढीठ खानदान से ताल्लुकात रखते हैं हमारे मुल्ला नसरुद्दीन.








I Live in The Moment : Here & Now

Meri yatra to jari hai....bahut door jana hai mujhe-aisa lagta hai....ho sakta hai chalte chalte kisi moment par manzil ghatit ho jaye......ya main chalna chhod sthir ho jaun aur sab kuchh ghatit ho jaye....aaj main past men bhi hun, presnt main bhi aur future men bhi.....iska matlab yah nahin ki main galat hun...iska matlab yah bhi nahin ki main sahi hun...bas hun aisa hi....yatra jari hai. Kavita men 'I' ka istemal kam se kam mere liye nahin hai, yaha 'I' bhi baat kahne ke liye aek jariya hai bas....aap padhoge to 'I' aap bhi to ho jaoge.........bas itna hi samajhiyega 'I' ko han baat ko bahut gehrayi tak samajhna zaroori hai.....LOVE.

Chunki maine anubhav nahin kiye hain purnatah, isliye yeh anubhav mere nahin hai.....kisi aur ke hain jinhone mehsoos hota hai anubhav kiya hoga........

Inhe upadesh na samajhiyega meherbani kar ke.....bas aek baat jo dil se dil ko khana chah raha hu--bas itna hi...

On A Crossroad.........

I am standing on
A crossroad
I am moving to past
That is mind
I live in moment
That is present
Here and now
That is the meditation….

Past the known
Present the unknown
Past the ritual
Present the adventure
I drop the past
Future evaporates
Remains the existential moment
I don’t cling to past
The moment lived becomes past
I drop it…how beautiful it may be
When I eat I only eat
When I sleep I only sleep
When I walk I only walk
I am the food when I eat
I am the sleep when I sleep
I am the walk when I walk
I don’t go ahead
I don’t jump here and there
I remain with the moment……..

I live in moment
I be with the moment
Mind is never where I am
Awareness is there where I am
I drop the mind more and more
I drop the minding
I become alert
I become aware
I am together with myself
In the moment…………

A new quality of life happens
A quality of being
A quality of awareness
A quality of witnessing
Sadness becomes happiness
Anger becomes forgiveness
Sex becomes love
The happiness
Which is just on the surface
Becomes deeper
I live in moment
I live in present
I drop the past
Future evaporates
Happiness emerges
Every moment
Every moment………

क्षण..........

क्षण
प्रतिक्षण
होती है
घट बढ़
बदलते हैं भाव
बदलते हैं विचार
देखो ना !
चींटी से क्षण से
बंधा है
यह गज सदृश
भव....

kshan
Pratikshan
Hoti hai
Ghat badh
Badalten hai bhaav
badalten hain vichaar
Dekho na !
Cheenti se kshan se
Bandha hai
Yah gaj sadrish
Bhav............

Wednesday, August 19, 2009

आओ विमर्श करें........

स्वतंत्रता दिवस पर
शुभकामनाओं का
रस्मी आदानप्रदान,
उन्हें याद करना
आजादी के लिए
लड़ने में
जिन्होंने दिया था
योगदान,
सीमा पर जिन्होंने
प्राण गँवाए
जो लौट के घर ना आये
उनका यशोगान,
बहुत सुन्दर लग रही है
भारत माता
हिमालय का मुकुट धरे
सागर कितना हर्षित है
माँ के चरण पखारने
करें इसका भी अनुमान,
कल कल करती नदियाँ
लहलहाते खेत
विपुल जन समुदाय
पड़ोसियों के हालात
हमारी ज़रूरतें
कह रही है हमें
अतिसुन्दर हुआ
जननी जन्मभूमि की
गौरवगाथा का संगान,
किन्तु मित्रों !
सोचें समझें और करें
सामुदायिक हितों हेतु
लगायें संचित उर्जा को
सर्वजन हिताय
सर्वजन सुखाय.......
यही होगा हमारा
स्वतंत्रता दिवस का अनुपालन ;
यही होगा आज केलिए
अपने संकल्पों को
दोहराने का सोपान......

मुल्ला का ज़नाज़ा.......

मेरी रचनाओं पर ऑफ-लेट देखा कि दो पाठिकाओं के कमेंट्स बहुत गज़ब होते हैं. वे हैं बरेली-उत्तर प्रदेश निवासिनी श्रीमती मुदिता गर्गजी और हैदराबाद ( आंध्र प्रदेश) कि मोहतरमा महक अब्दुल्लाजी. दोनों ही मेरे दोस्त मुल्ला नसरुद्दीन को अपनी कलम से नवाजती हैं....इस-से यह इन्फेरेंस ड्रा किया जा सकता है कि दोनों ही, मेरी हो या ना हो उनकी प्रशंसक ज़रूर है..... और भाइयों और बहनों ! मुदिताजी ने तो मैदान में जमालो बी को भी उतार दिया है मैदान में, अतुलजी के सक्रिय सहयोग के साथ. फिर भटक गया, हाँ तो मैं कह रहा था कि दोनों के कमेंट्स बहुत ही ज़हीन और जरा हट कर होते हैं, कभी कभी तो रचना पर ऐसे हावी हो जाते हैं....और लिटरली मुझे 'दुम' दबा कर खिसकाना होता है. जहां मुदिता जी तरंगों और जागरूकता कि बातें कर गुह्य ज्ञान का परिचय देती हैं वहीँ महकजी कभी मेरे पुराने खाते खोलती है तो कभी दार्शनिकता के अंदाज़ में चुटकी लेती है. यह बात तो आप भी मानेंगे कि इन दोनों विदुषी महिलाओं की 'मथुरा तीन लोक से न्यारी होती है." कभी कभी तो दिल करता है कि इनकी पेशी 'कल-तक' टेलीविजन चेनल के 'दब्बू बावला' के सामने कर, 'टेढी बात' करा दूँ, मगर इनके कमेंट्स से मेरी रचना की TRP बढती है इसलिए खुद को रोक लेता हूँ. दोनों ही में 'लाडो' की अम्माजी सी तुरत बुद्धि है और सब टीवी की मणिबेन सी 'different approach' . इसी क्रम में दोनों कि प्रतिक्रिया सामान्य से परे होती है, और कभी कभी तो ऐसा लगता है कि दोनों ही हम आम इंसानों कि तरह नहीं सोचती....आज इनकी चुगली करूँगा आपसे, जिस से आप भी मेरी बात में 'एस्सेंस' है, इस बात को अपना समर्थन देंगे.

हाँ, मुल्ला नसरुद्दीन को , आप जानते हैं, कि चीजों को इकठ्ठा करने की लत है, 'deo' और 'perfume' की खाली बोतलें हों, क्रीम पौडर के खाली डिब्बे हो, शौपिंग मॉल के खाली कागज़ या प्लास्टिक के थैले हो, घी तेल के खाली डिब्बे, दवा, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम कि नुचुदी ट्यूबें हो, पुराने अख़बार रिसाले या पिज्जा हट/डोमिनोस के पम्फ्लेट्स हो, घिसे झाडू के अवशेष हो, पुराने हाउस अप्ल्लायिसेस, छाते, फटे पुराने कपडे और भी ना जाने ऐसी कई चीजें मुल्ला जमा कर के रखते हैं. और तो और, मुल्ला अपने यहाँ सहन में उगे पेड़ों के पत्ते, बाथरूम आदि टूटने पर निकला मलबा-यथा पुराना बेसिन, बाथ टब, कमोड, टाईल्स इत्यादि भी संग्रह करतें हैं-शायद चंडीगढ़ कि तर्ज़ पर रॉक गार्डन बनाना हो......
कहने का मतलब यह है कि मुल्ला को पुरातत्व का पूरा शौक है, पेसन है. हाँ तो मुल्ला का घर कबाड़ से भर गया था.....मुंशी-पार्टी ने घोषणा कि थी बढ़ते मलेरिया और swine flu के प्रकोप को देखते हुए, ऐसे आदमियों पर रेड कि जाय, दण्डित किया जाय जो कचरा जमा करते हैं, (पड़ोसियों के घर या सड़क पर फेंक निजात जिन्होंने नहीं पाई हो). मुल्ला जैसे कई क्युरियो के शौकीनों पर आफत आ गयी, शहर में गहमागहमी मच गयी. मुल्ला ने एक मिनी ट्रक भाड़े किया, और घर का सारा कचरा उसमें भरवा दिया ताकि शहर के बाहिर डंप किया जा सके. कचरे का परिमाण(qauntity) को देखते मुल्ला को बड़ा ट्रक भाड़े करना था, मगर मुल्ला तो हमेशा मितव्ययी रहे हैं आप उन्हें कंजूस कहें या कुछ और. यह मिनी ट्रक भी उन्होंने मुर्दाघर के सफाई कर्मचारी चित्लाल (जरी लाल का रेफेरेंस देकर) से सेटिंग कर अन- ओफिसिअली लगाया था. हाँ तो मिनी ट्रक पूरी भर गयी थी, चित्लाल बोला, "मुल्ला अब बस भी करो-इसमें जगह नहीं....मुल्ला बोलो एक आध सॉलिड आइटम भर लो...." चित्लाल गुर्राया, "तुम्हारा कुछ नहीं बिगडेगा, कचरा गिर गया तो सफाई निसपेटर हम ही को तो धरिबे करेगा....फालतू ठर्रे कि बाटली दो बाटली का खर्चा होगा....मेरी मुनाफे पर अभी भी प्रेसर है...मंदी में और कम हो जायेगा---कोई सरफिरा ईमानदार भेंट गया तो फैन कर देगा, लेने के देने पड़ जायेंगे."

आप जानते ही हैं, मुल्ला बोर्न जीनियस, लगा कहने, " हे हरी के जन, कहे घबराता है, हम हूँ ना, हम कचरे के ऊपर लेट जाऊंगा....मजाल कि कुछ गिर जाये." चेत्लाल भी एडवेंचर के मूड में था, अग्री हो गया. मिनी ट्रक-मुर्दाघर की राष्ट्रीय सम्पति-जिस पर राम राम, अल्लाह हाफिज़, गोद इस ग्रेट कैसे धार्मिक वाक्य अंकित हो, चालक मदहोश ठर्रा प्रेमी चेत्लाल, पीछे लदी है नाना प्रकार की गृहपयोगी प्राचीन वस्तुएं, और उन पर छे फ़ुट का तगड़ा पठान मुल्ला नसरुद्दीन फैला हुआ है. हाँ तो ट्रक गुजरती है एक घुमावदार fly-over से, उपरी पुलिया के किनारे मुदिताजी, महकजी और जमालोजी मंत्रणा कर रही है, किसी गूढ़ विषय पर.....नज़र पड़ती है ट्रक पर, देखते ही उनकी संवेदना को खुजली होने लगती है......कहती है :
मुदिताजी : "जागरूक होने की ज़रुरत है, देखो हट्टा कट्टा इन्सान बैमौत मार गया, कहते हैं ना इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, किन्तु घरवालों कि उदारता देखो उसका बाथरूम तक साथ भेज रहे हैं...ऐसा मैंने पढ़ा था कि मिस्र के पिरामिडों में सुल्तानों/मल्काओं कि ममियों के साथ रखा जाता है...कितनी सुखद बात है इस परम्परा का निर्वाह हमारे देश में किया जा रहा है वह भी इस आधुनिक युग में, सचमुच वायिब्स की बातें हैं....हर अच्छी बात के स्पंदन दूर तक यात्रा करते हैं....यह ज़नाज़ा जागरूकता का अनुपम उदाहरण है."
महक : "इंसान और कचरे में कोई फर्क नहीं करते आजकल के लोग, देखो ना इस बलिष्ठ व्यक्ति को कूड़े करकट के साथ फैंक दिया जायेगा.....काश ऐसा राजस्थान में होता.....इनको सम्मानपूर्वक चांदनी रात में बालू के स्वर्ण सामान टीलों पर रखा जाता, फैंका नहीं जाता, फिर विधिपूर्वक मिटटी को सुपुर्द किया जाता....राजस्थान कि परम्परा ही कुछ और है, आँखे नम हो रही है."
जमालो ने दोनों को सुना, और ठहाके मार कर हंसने लगी. लगी कहने :
" आप दोनों तो बुद्धिजीवी ही रही . अरे ! यह तो जिंदा मुल्ला है, देखा नहीं तोंद कपालभाती कर रही है, बुलाओ अतुल जी को किस्से का अच्छा प्लाट मिल गया है."
फ़िलहाल बस........




जागरूक/Jagrook.......

चमकता
दमकता
हीरा
गिरा था मिट्टी में
लिपट कर उसमें
हो गया था अँधा
बीज भी
दबा था
उसी माटी में
खोली थी आँख उसने
आने को ऊपर
बना था
पेड़ छायादार
फूलों-फलों से लदा............

Chamakta
Damakta
Heera
Gira tha mitti men
Lipat kar usmen
Ho gaya tha andha
Beej Bhi
Daba tha
Usi maati men
Kholi thi aankh usne
Aane ko upar
Bana tha
Ped chhayadar
Phoolon-phalon se lada........

Sunday, August 16, 2009

निराई/Nirayi.........

बढ़ते हैं
संग फसल के
अनचाहे
खर-पतवार-घास भी
खेतिहर यदि
ना करे
निराई उनकी....
सूख जायेंगे
हरे-भरे
बूटे भी.......

badhte hain
sang fasal ke
anchahe
khar-patvar-ghas bhi
khetihar yadi
na kare
nirayi unki
sookh jayenge
hare bhare
boote bhi.............

Friday, August 14, 2009

घाव..............

कोई बासठ
वर्ष पूर्व
स्वतंत्रता के नाम
हुआ था मेरा
शल्योपचार,
पूर्ण संज्ञान में
हुआ था
विच्छेदन
उच्छेदन
मेरे अंगों का,
औषधियां
समस्त
हुई है व्यर्थ,
घाव मेरे
अब तक हरे हैं......

Thursday, August 13, 2009

पाऊं तुझ से मैं

हे कृष्ण !
पाऊं तुझ से मैं
मुस्कान
हंसी
ख़ुशी
उत्सव
वीरता
चेतना
साक्षीभाव
जीवन का वृहत योग
स्वभाव की पूर्ण उत्फुल्लता
फलाकांक्षा मुक्त कर्म
पल पल जीने का ज़ज्बा
सहजता
समग्रता
और मेरे कान्हा !
तुमको...............

Hey Krishna !
Paun tujh se main
Muskan
Hansi
Khushi
Utsav
Veerta
Chetna
Sakshibhav
Jeevan ka vrihat yog
Swabhav ki purna utfullta
Phalakankasha mukt karm
Pal pal jeene ka zazba
Sahazta
Samgrata
Aur mere kanha !
Tum ko................

Wednesday, August 12, 2009

गोविन्द नाम भजो.: aamukh Tippani.....

यह रचना आदि शंकराचार्य रचित 'भज गोविन्दम मूढमते" से प्रेरित है. इसका सन्देश संसार से पलायन नहीं, जागरूक हो कर वास्तविकताओं को
समझते हुए जीना है, इसमें किसी भी बात को अस्वीकार करने हेतु प्रेरित नहीं किया गया है....बस जो है उसे वैसा समझने का उपक्रम करने को कहा गया है. आत्मा इसी मार्ग को अपना कर 'स्वयं का परमात्मा होना' realize कर सकती है. शब्द जड़मति से तात्पर्य मूर्ख होने से, अज्ञानी होने से नहीं ......जड़मति होने से यहाँ तात्पर्य 'फिक्सड माईंड' होने से हैं अर्थात अज्ञानी होते हुए भी स्वयं को ज्ञानी समझना. यह एक प्यारा सन्देश है जिसमें ज्ञान ध्यान और भक्ति का अनूठा समन्वय है. यह भक्त और भगवान के एक हो जाने की बात है. इस रचना को कुछ हद तक संशोधित भावानुवाद कहा जा सकता है.....शंकर के लिए प्रेम है किन्तु अँधा अनुसरण नहीं......
भक्ति हमें ज्ञान के शिकंजों से मुक्त करा कर हमें ज्ञान का नैसर्गिक लाभ दिलाने का एक जरिया है.......गोविन्द नाम सुमरिन से तात्पर्य सहज हो जाने से है......फिक्सड माईंड से आज़ाद हो जाने से है......जो होना है उसे हो जाने देने के क्रम में आ जाने से हैं.....कर्ता भाव से मुक्त हो जाने से है.
हम विवेकशील आधुनिक सोचों वाले लोगों का एक परिवार है, निवेदन करूँगा कि इस रचना के सहयोग से हम सब अपने सोचों एवम अनुभवों को गति दें.....यह रचना बस एक साधन है....एक औजार है जागरूकता की स्थिति हासिल करने के क्रम में........

* संग्रहण शब्द रचना में 'बटोरने' से आशय लेकर प्रयोग किया गया है.

**रचना में अर्धानिगिनी शब्द का उपयोग हुआ है.अर्धांगिनी से तात्पर्य यहाँ मात्र पत्नि से नहीं किसी भी ऐसे से है जो किसी को अपना समझता है....चाहे पत्नि,पति, प्रेमी,प्रेमिका, नातेदार, बन्धु-बान्धवी कुछ भी कहलाये.

भजो रे जड़मति ! गोविन्द नाम भजो......


भजो रे जड़मति
गोविन्द नाम भजो......
अन्तकाल जब आवे रे बन्दे
शास्त्र रटन ना बचावे रे बन्दे
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

तजो संग्रहण*की तृष्णा को
करो जागृत तुम सुबुध्दी को
पा श्रम का प्रतिफल रे बन्दे
प्रसन्न संतुष्ट रहो तुम बन्दे
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

देह यौवन अस्थायी मात्र है
समझो बस मदिरा के पात्र हैं
विचार सतत उच्चार रे बन्दे
मोहाविष्ट ना हो जाना रे बन्दे
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

नीर चपल ज्यों कमल पत्र पर
जीवन अस्थिर विश्व पटल पर
अंहकार रोग प्रबल रे बन्दे
दुःख आहत संसार रे बन्दे
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

जब तक प्राण समाहित देह में
कुशल क्षेम ये शब्द है जग में
प्राण निकासी जिस पल हुई है
अर्धांगिनी**भी भयभीत भई है
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

बालक आसक्त है निज क्रीड़ा में
वृद्ध सिक्त है निज पीड़ा में
सब कोई डूबे यहाँ वहां रे
हो प्रभु से संलग्न रे बन्दे
गोविन्द नाम भजो
भजो रे जड़मति......गोविन्द नाम भजो.

Tuesday, August 11, 2009

कच्चे रंग/ kachche Rang

मिट गए थे
अश्रुधारा में
नयनों के
सतरंगे स्वप्न,
आ गए थे
सम्मुख
कटु सत्य
जीवन के,
है जब तक
अस्तित्व
पलकों की ओट का
कैसे टिकेंगे
मन के चितेरे के
कच्चे रंग............

Mit gaye the
Ashrudhaara men
Nayanon ke
Satrange swapan,
Aa gaye the
Sammukh
Jeevan ke
Katu satya,
Hai jab tak
Astitva
Palkon ki aot ka
Kaise tikenge
Man ke chitere ke
Kachche rang.........

Monday, August 10, 2009

ध्रुव तारा /Dhruv Taara

टूटे हैं
टूटते हैं
टूटेंगे
तारे अनगिनत
किन्तु.......
ध्रुव तारा
होता है
उदीयमान
उसी स्थान पर
अनंत काल से.........

Toote hain
Toot-te hain
Tootenge
Taare anginat
Kintu
Dhruv taara
Hota hai
Udiyman
Usi sthan par
Anant kal se...........

Sunday, August 9, 2009

तुतक तुतक तूतिया...... हाय जमालो............

Tajurba किसे कहा जाय ? जब आपको वह ना मिले जिसकी आपने उम्मीद की थी, जिसके लिए आपने मनसूबे बनाये थे, तसव्वुर की थी.........और आपको कुछ और ही मिले. मेरा दोस्त मुल्ला नसरुद्दीन और मैं बहुत ही पोजिटिव सोचों वाले हैं.....हमारा रवैय्या हमेशा constructive ही रहता है. जैसे कि उस दिन मुल्ला सड़क पर गिर पड़ा, चोटें आई .....हमदर्दी जताने लगे लोग.....मुल्ला बोला: "अररे अररे !.. ...फ़िक्र की कोई बात नहीं, इस से भी बुरा हो सकता था, मैं तो गिरा था सड़क पर.....और कोई दौड़ता हुआ ट्रक आ जाता....आपका प्यारा दोस्त नसरुद्दीन खुदा को प्यारा हो जाता, उसकी बीवी बेवा और बच्चे यतीम हो जाते, आप लोगों का दिया हुआ क़र्ज़ डूब जाता.....शुक्र मानिए खुदा बंद ताला का जो मैं बच गया.....चोटों का क्या....वक़्त गुजरने के साथ मिट जायेगी."

जमालो काण्ड पर भी मुल्ला का खुलासा कुछ इस तरह था, "अफवाह फैलाने वालों से होशियार, यह सरासर झूठ है कि बुर्के को देख कर मैं बेहोश हो गया.....जी नहीं मैं तो मेडिटेशन करने लगा था ताकि फजीहत बेगम के लिए मेरे मन में कोई मलाल या नफरत ना रहे.....और मासटर ने कहा भी है कुछ भी हो जाये पोजिटिव सोचो, और मुझे भी तो मिसाल भी कायम करनी थी ना कि मेरा एक हज़ार गया मैं नोर्मल, मासटर का भी एक हज़ार गया उसे भी नोर्मल रहना है.....फिर सौ सुनार कि एक लोहार की....क्या तैरनेवाले कि बीवी बेवा नहीं होती ? जो एक्टिव होता है उसे ही नफा-नुकसान होता है.....इनएक्टिव लोगों को कुछ भी नहीं होता.....no gain without pain........वक़्त बताएगा--ऊंट किस करवट बैठता है."

मगर मुल्ला भीतर से बहुत भुनभुनाया हुआ था.....उसकी समझदानी (ब्रेन) खूब हरक़त में आ गयी थी.
चोर के घर मोर, मुल्ला को कैसे बर्दाश्त हो......मेरे पास आकर दुखडा सुनाने लगा.....मुझे उकसाने लगा, "अमां क्या पढ़े लिखे अहमक हो, एक इश्तिहार तक को ना समझ पाए.....हम तो बेवकूफ कहलाते हैं, तुम तो दिमाग वाले कहलाते हो, रोक देते हम को.....अपना भी हज़ार गवायाँ और हमें भी हज़ार का कर्जदार बना दिया." मुल्ला ने चालाकी से मेरे एक हज़ार के waiver की घोषणा कर दी थी.
फिर लगा कहने, "बड़े मनिज्मेंट एक्सपर्ट बनते हो.....बनाओ ना कोई बिजनस प्लान जिस से हमारे नुकसान की भर पाई हो.........उस फजीहत की फजीहत भी हो.....उसका तुतक तुतक तूतिया हाय जमालो हो जाये."
मुल्ला यह कह कर अपने पुराने तरीके से चाय सुड़कने लगा याने कप से सौसर में डाल महंगी दार्जिलिंग टी की ऐसी तैसी करने लगा था. मैंने सोचा, मुल्ला ने सोचा और........
कैच था--की सौदा का बेस ऐसा हो की कोई चेलेंज ना कर सके. इन्सान लालच या डर का शिकार होता है.....तो दूसरा कैच था लालच. जमालो ने खुद को establish कर लिया था.....मुल्ला जैसे सैंकडों बेवकूफ बन चुके थे.......'जमालो लिमिटेड' के नाम से कंपनी बन गयी थी, उसके शेयर भी इश्यु किये जा चुके थे....जमालो की बल्ले बल्ले थी.....यह सब मैंने खोज खबर ले ली थी.....चूँकि जमालो के इश्तिहार से उसके प्रोडक्ट का मैच हो रहा था याने बुर्का जिसमें होने से आप सब को देख सकते हैं, मगर कोई आपको नहीं.......इसलिए किसी की भी शिकायत कंजूमर फोरम पर नहीं टिक सकी थी. हम ने भी सोचा इसी की तरकीब से इसे मात दी जाये.......
एक गौरे को पकडा सलारजंग म्यूज़ियम के पास से, जिसके डॉलर ख़तम हो गए थे और फटेहाल था. नाम था उसका फ्रेडेरिक जॉन, अपना पुराना सूट उसे पहनाया और उसे साथ लेकर मुल्ला बाकायदा कारपोरेट कल्चर को निबाहते विथ appointment मिले जमीला मैडम से......कहा कि जॉन साहब जर्मनी में अनुसन्धान कर आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपेथिक सब तरीकों को साथ लेकर diabities, मोटापे, ब्लड प्रेशर, गुप्त-रोग इत्यादि के इलाज के लिए दवाएं बनायीं है......१०० गोलियों के पैक की कीमत 'फ्रेड-मुल्ला कंपनी' मात्र १०० रूपया लेगी........उसे आप इश्तिहार के जरिये आराम से ५०० रुपये में बेच सकेंगे.....चैन मार्केटिंग का सहारा लें तो और भी वारे न्यारे हो सकते हैं......बनाये हुए सर्टिफिकेट, बाबा कामदेव स्टाइल cd, पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन सब ने अपना कमाल किया......जमालो फंस गयी.....बारिश में भीगी नायिका और खूब नफा कमाए व्यापारी का मूड हमेशा अपबीट रहता है.....बोली जमालो, "मुनाफा अगर ना हुआ तो ?" मुल्ला बोला मुनाफा अगर ना हुआ तो आपका पूरा पैसा वापस. अग्रीमेंट तैयार हुआ जिसमें बाकायदा लिखा गया- "अगर इस डील में मुनाफा नहीं हुआ तो जमालो लिमिटेड को पैसा वापस." हाँ बीस लाख का आर्डर 'जमालो लिमिटेड' ने 'फ्रेड मुल्ला को.' को दिया और यह भी अस्योरंस ली कि यह प्रोडक्ट 'जमालो लिमिटेड' के इलावा किसी को नहीं दिया जायेगा....मुल्ला ने १० फीसदी अडवांस रखा लिया विथ आर्डर ......मुल्ला ने पहिला consignment १० लाख का भेज दिया, भुगतान ले कर......दवा कि जगह क्या था खुदा जाने शायद नीम, मैथी, अशोक छाल वगेरह 'सेफ' चीजों से गोलियां बनायीं गयी थी......कुछ माल बिका, मगर फिर टाँय टाँय फिस्स,
जमालो ने मुल्ला से क्लेम किया कि पैसा लौटाया जाय...... इसमें मुनाफा नहीं हुआ.....मुल्ला बोला मुनाफा हुआ है हमें, चार्टर्ड एकाउंटेंट से जाँच करालो......अग्रीमेंट में कहाँ लिखा है कि 'आपको' मुनाफा होना चाहिए......लिखा है, "अगर इस डील में मुनाफा नहीं हुआ तो जमालो लिमिटेड को पैसा वापस." .....और मुनाफा हुआ है......'फ्रेड-मुल्ला कंपनी' को इस डील में.......सो मैट्रिक पढ़ी जमालो को होश आ गया.......

मगर मुल्ला ने अब तक मेरे हज़ार रुपये और जॉन को पहनाया वह सूट मय टाई मुझे नहीं लौटाया है.....कहा जाता है कि मुल्ला अपनी महबूबा नम्बर १९ को लिए उस सूट में और महबूबा उस जमालो डिजाइनर बुर्के में........हैदराबाद के शोप्पेर्स स्टाप मॉल में दिखाई दिए......'ग्रैंड ककातिया-वेलकम' के
दम-पुख्त रेस्तरां में चांदी कवाब खाते दिखाई दिए......सुना है मुल्ला इस बार सीरियस है..... बोले तो....और मैं भी सीरियस हूँ.......तुलसीदास जी के यह वचन याद करता हूँ, "अब लौं नसेनी अब ना नसेहों" याने अब तक नाश किया अब नहीं करूँगा......

तो गाया जाय : तुतक तुतक तूतिया...... हाय जमालो............

पथ के कांटे/Path ke Kante

है कौन
जो बुहार सके
कांटे सब
राह के ????????????
पथिक !
पहन पादुका
पावों में
बढ़ चल
जीवन पथ पर
पाने हेतु
मंजिल तुम्हारी ..........

Han kaun
Jo buhar sake
Kante sab
Rah ke ????????????
Pathik !
Pahan paduka
Paon men
Badh chal
Jeevan Path par
Paane hetu
Manzil Tumhari...........

Saturday, August 8, 2009

गांठे : एक विचित्र ज्योमिति/Ganthen : Aek Vichitra Goemetry

खोली कर गांठे
उलझी डोर की
किया अनुभव
बढ़ी है उसकी
लम्बाई.......
सोचा
क्यों ना खोलूं
गांठे मन की
बढ़ाने निज कद की
ऊँचाई..........

Gaanthen

Khol kar gaanthe
Uljhi dor ki
Kiya anubhav
Badhi hai uski
Lambayi ;
Socha
Kyon na kholun
Gaanthen man ki
Badhaane nij kad ki
Unchayi...................

Friday, August 7, 2009

पहल/Pahal..........

लाना है जो भी
जीवन में
देना होगा ह्रदय से
करके पहल :
प्रेम
समझ
प्रशंसा
हर्ष और
आनंद .........

Lana hai Jo bhi
Jeevan men
Dena hoga hriday se
Karke pahal :
Prem
Samajh
Prashansa
Harsh aur
Anand......

Wednesday, August 5, 2009

सौतेला व्यवहार/Sautela Vyavhaar

होता है
कली सा सुकोमल
उगता काँटा
बना देता है
उसे कठोर
बूटे का
सौतेला व्यवहार..........

Hota hai
Kali sa sukomal
Ugata kanta
Bana deta hai
Use kathor
Boote ka
Sautela vyavhaar......

Monday, August 3, 2009

अवसर...

# # #
देता रहता है
अवसर
निरंतर
अस्तित्व हम को,
हाथ हमारे
ना जाने कहाँ
हो जातें हैं
व्यस्त
कभी ढांपने शर्म को
कभी पकड़ने
उन चीजों को
जिनकी होती नहीं
अहमियत,
कभी मांगने दुआएं
भूला कर
खुदा की बख्सी
ताक़त को,
और
गुज़र जातें हैं
अवसर
सामने से हमारे,
कारवां जाता है गुज़र
और हम
देखते रहतें हैं
बस गुबार....

मुल्ला ने खुशियाँ फैलाई........

मुल्ला नसरुद्दीन को मैं कहता था, "अमां कभी तो कुछ अच्छे काम किया करो, खुदा के पास जाना है."
मुल्ला पूछता, "मास्टर अच्छे कामों की क्या परिभाषा ?"
मैं कहता, "कुछ ऐसा करो जिससे प्रसन्नता का फैलाव हो......जब दूसरों को तुम खुश करोगे, तुम भी खुश हो सकोगे, और उस ख़ुशी की महक चारों तरफ फ़ैल जायेगी."
आप जानते ही हैं मुल्ला के सारे फंडा अनूठे होते हैं, quite different.........
मुल्ला एक दोपहर मेरे पास आया. उसने कहा की आज तीन अच्छे काम किये हैं.
मेरे कानों में घंटियाँ बजने लगी, जासूसी उपन्यासों के मेजर बलवंत की तरह मेरे होंठ गोल हो गए सीटी बजाने के लिए...होने लगे कुछ होने के एहसास. कहा मैंने, " कौनसे अच्छे काम किये, भाई मुल्ला, हम भी तो जानें."
मुल्ला लगा कहने, "पहिला अच्छा काम तो यह किया की एक भिखमंगे को सौ रुपये की खैरात की."
मैं बोला, "सौ रुपये..ये ...ये...ये....?"
मुल्ला बोला, "यही तो कहने जैसी बात है. पूरा सौ रूपया दिया प्रोफ़ेसर मैंने उस फकीर को, क्या सोच सकते हो तुम ?"
मैंने फिर पूछा, "दूसरा अच्छा काम क्या किया ?"

मुल्ला ने जवाब दिया, " दूसरा अच्छा काम यह हुआ की मैं बहुत दिनों से नकली १००० रुपये का नोट लिए फिरता था....किसी ने मुझे उल्लू बना दिया था....तुम्हे तो मालूम ही है मैं बहुत दुखी था इसकी वज़ह से.....हाँ, वह हज़ार का नोट मैंने उस भिखमंगे को दिया और कहा सौ तुम रख लो और मुझे नौ सौ लौटा दो. उसने ऐसा ही किया....क्योंकि मेरे जैसे दयालु कभी कभी तो आतें है उनके पास."
मैं खुंदक खा रहा था मगर पूछ बैठा, " तीसरा अच्छा काम क्या किया ?"
नसरुद्दीन ने टपक से जवाब दिया, " अमां यार इतना भी नहीं समझ सके, तीसरा अच्छा काम यह कि
वह भी खुश....मैं भी खुश. उसको सौ रुपये मिले और मेरा हज़ार का नकली नोट चला.....मुझे नौ सौ मिले......उसको सौ मिले.....दोनों को मिला....दोनों का मान-चित्त प्रसन्न....सब भावना कि ही तो बातें हैं.....तुम शायर लोग यही तो लिखते हो....मान प्रसन्न हो गया.....ख़ुशी में डूब गया.....बस ऐसा ही कुछ उसके साथ और मेरे साथ हो गया....हम दोनों ने एक दूसरे का साथ निभा दिया, यूँ ही निभाते रहेंगे........यही तो चाहते थे ना तुम."

"चल एक काम कर इस ख़ुशी में हो जाये दोपहर रंगीन, कल्लू मियां के कवाब मैं लाया हूँ, चल फ्रीज़र से ठंडी बियर निकाल, इस गरमी में तुम भी प्रसन्न...हम भी प्रसन्न....क्यों ना चौथा अच्छा काम कर लिया जाय." mulla aek achiever ke muafik bola......aur main khushiyan failane men mulla ka sath de raha tha.






हुआ दर्पण दिल हमारा है.......

डूब जाना है तुझमें फिर भी, देखें क्यों किनारा है
चलते हैं खुद ही से भगवन, फिर भी तू सहारा है

जब से लौ लागी है तुझमें,हुआ दर्पण दिल हमारा है
तेरे सिवा हो अक्स किसी का, हम को नहीं गवारा है

बिखरे बिखरे से जीवन को, रूप से तू ने संवारा है
जो भी सजा है तन मन में, वो सब ही दिया तुम्हारा है

हवा का ठंडा झोंका है तू , अगन का एक शरारा है
ज्ञान का रोशन दीप है तू, भटकों को एक इशारा है

आजाद हूँ हर शै से मौला, मालिक तू हमारा है
सब के हैं हम प्यारे फिर भी, हम पर तेरा इजारा है

मुल्ला से मेरा तआरुफ़ कैसे हुआ ?

मुल्ला से आपका तआरुफ़ कैसे हुआ ? यह सवाल मुझे बहुत से ख्वातीनों हज़रात ने पूछा है.लाजिमी भी है उनका पूछना, क्योंकि हमारी तहजीब में पहली मुलाक़ात किसी से होने के साथ कई सवाल नुमायाँ होतें हैं, जो इन्सान की जाती ज़िन्दगी से जुड़े होतें हैं. उनके जवाब आप चाहे सच दो या गलत, आप पर भरोसा नहीं किया जायेगा क्योंकि ज्यादातर लोग खुद को RAW के नुमायिंदे समझतें हैं.....
और मैं जवाब देते देते इतना पक गया हूँ की जो कुछ कहता हूँ झूठ कहता हूँ झूठ के सिवा कुछ नहीं कहता हूँ.
अब ऑरकुट की ही लें, मुझे पूछे गए सवालों की फेहरिस्त आप से शेयर करूँ : प्र: आप क्या करतें हैं ? उ: प्रोफेसर हूँ. प्र: कौनसी कॉलेज के ? उ: आजकल गेस्ट फेकल्टी हूँ. (फैंकता है.... ऐसा कभी होता है...) प्र: क्या पढातें हैं ? उ : ह्यूमन रिसोर्सेस मैनेजमेंट, फिलोसोफी, और कम्युनिकेशन स्किल्स....वैसे जनर्लिस्ट हूँ.....कुछ भी पढ़ा सकता हूँ, साइंस सब्जेक्ट्स को छोड़ कर.

प्र: फाइनेंस भी. उ: जी. (फालतू बात करता है कहीं हो सकता है ऐसा.....मेरे खानदान में कई मास्टर/प्रोफ़ेसर हैं क्या जानता नहीं...उंह ) प्र : आप अच्छा कमा लेतें होंगे? उ : जी प्र: कितना ? उ : बहुत सा. प्र: आप मेरिड हैं ना ? जी नहीं. प्र: ओह प्रोफाइल में कमिटेड लिखा है--तो आप बेचलर हैं ? उ: जी नहीं मैं अन्मेरिड हूँ. प्र: बेचलर और अन्मेरिड में क्या फर्क प्रोफ. ? उ: यह बात समझने की है या फोर्मेर प्राइम मिनिस्टर बाजपेयी जी से पूछने की है. (चरित्रहीन है बन्दा..अपना क्या ) प्र: आपकी नज्मों में तो किसी नाकामयाब मोहब्बत के संकेत मिलतें हैं.....कहाँ गयी दीवानी आपकी महबूबा....by-the-way वह तो मुसलमान थी ना और आप हिन्दू ? उ : जी हम एक नहीं हो सके. प्र: क्यों ? उ : क्या आप मेरी शादी कहीं करने पर तुले हैं.......मुआफ कीजिये प्लीज़ मुझे जाती सवाल ना पूछें. प्र: बस आखिरी सवाल सर ! आप राजस्थान के राजपूत कहतें है खुद को मगर प्रोफाइल में नेपाल का भी बताया है खुद को. उ :(सोचता हूँ इसका जवाब अच्छे से दूँ)- जी नेपाल का राजवंश और राणा वंश मूलतः राजस्थानी राजपूत वंश शिशोदिया से हैं, रिश्ते होतें हैं आपस में. मेरी मां राजस्थान से थी और उनका विवाह नेपाल में हुआ था. उ ; ओह ! (भाग गयी होगी मां इसकी किसी नेपाली के साथ-अपना क्या ? - लिखता ठीक-ठाक है...बातें भी अच्छी करता है.) दाल गली नहीं मगर आगे के लिए दरवाज़े खुले रखने हैं....कहेंगे ; "आप से बातें करना अच्छा लगा विनेशजी, टेक केयर....."

Meri Pahli Mulaqat Mulla Nasruddin Se.....

हाँ तो भटकाव आ गया.....सवाल यह था की मुल्ला से मेरा तआरुफ़ कैसे हुआ ?

मैं नया नया प्रोफ़ेसर लगा था हैदराबाद में. हमारे किसी अज़ीज़ रिश्तेदार के सौजन्य से मुझे रहने की जगह मिल गयी चारमीनार इलाके में-----एक दम हैदराबादी तहजीब का इलाका....आपस में मेल-जोल भी बहोत. कुछ दिनों में मैंने अपने इल्म के झंडे चारमीनार पर गाड़ दिए. मेरा अंदाज़ और एक्टिंग इतनी कुदरती थी की सब लोग मुझे बहुत ही मदद करने वाला और जहीन इन्सान समझने लगे थे . मेरे लिए भी नयी तहजीब में अच्छा खासा टाइम पास का जरिया था लोगों से मिक्स हो जाना और आप तो जानते ही हैं कि मेरी फ़ित्रत भी कुछ ऐसी ही है. खैर....

हाँ तो सन्डे का दिन था, मैं देर से उठा और बिना नहाये, पूजा किये अख़बार चाट रहा था और चाय की चुस्कियां लेते लेते कई कप खाली कर चुका था. आलस था कि स्किन डिजीज कि तरह मेरा साथ ही नहीं छोड़ रहा था......कहा भी जाता है ना स्किन डिजीज के मुआमले में-- ना तो रोग मरता है ना ही रोगी. (फिर भटक गया मैं यारों) .... हाँ तो पडोसी एक पागल को मेरे पास ले आये. उसमें कुछ खास मुआमला नहीं था. जवान आदमी,एकदम चुस्त और तंदुरुस्त. बस उसको एक बहम सा हो गया था कि दो मख्खियाँ उसके भीतर घुस गयी है. रात सो रहा था, नाक से दो मख्खियाँ अन्दर चली गयी. अब ये दोनों अन्दर भिन्न- भिनाती है. अब वह बैचैन है- ना सो सकता, ना खा सकता-सब अस्त-व्यस्त हो गया है. इलाज करवा डाले सब. अब मख्खियाँ हो तो भी कुछ हो सके-कुछ किया जाये . डॉक्टर कहे कि भई कोई मख्खी नहीं है, सोनोग्राफी में भी नहीं आती, फुल बॉडी स्कैन में भी नहीं दिखाई देती. पर वह कहे कि तुम्हारी सोनोग्राफी या स्कैन को मानूं या अपने तजुर्बे को ? कहता है-मैं भनभनाहट सुनता हूँ, टकराहट सुनता हूँ, हड्डियों में चलती है, सरकती है. तुम्हारे स्कैनिंग में ना आये, तुम्हारी कोई भूल है. तुम्हारे सोनोग्राफी/स्कैन में ना आने से मेरी तकलीफ तो बंद नहीं होती. यह भी ठीक बात है कि मेरी तकलीफ तो जारी है.

मैंने सोचा आज इम्प्रेस करने का मौका है.....कहा मैंने, "कुछ उपाय करतें हैं." उसको कहा कि तू आंख बंद कर के लेट जा और जब तक मैं ना कहूँ तू आँख मत खोलना. तेरी मख्खियों को निकालने की कोशिश करतें हैं. उसको अच्छा लगा जब मैंने कहा कि मख्खियों को निकालने कि कोशिश करतें हैं, क्योंकि कम से कम, मख्खियाँ है, इसे एक पढ़े लिखे आदमी ने तो माना. उसने तुंरत मेरे पैर छुए---उसने कहा-सिर्फ आप ही एक समझदार इन्सान मिले. ना मालूम कितने लोगों के पास गया, वे पहले तो यही कहतें हैं कि कैसी मख्खियाँ-----हंसने लगते हैं. हम मरे जा रहे हैं मख्खियों कि भनभनाहट से और तुम्हारी मजाक ! और तुम हँसे जा रहे हो ! डॉक्टर और हँसे तो दुःख होता है. आपने ठीक किया, आप जरूर ठीक कर पाएंगे मुझे.
मैंने कहा, इसमें कोई अड़चन नहीं. मख्खियाँ मुझे दिखाई पड़ रही है, मैं उनकी भनभनाहट भी सुन रहा हूँ....कैसे स्कैनिंग में नहीं आती है यह अचम्भे कि बात है. वह बेफिक्र हो गया. मैंने कहा, तू......आँखों पर उसकी पट्टी बांध कर उसे लिटा दिया. तब मैं भागा और घर में बमुश्किल मख्खी पकड़ पाया, क्योंकि वे मख्खियाँ.....उसको मख्खियाँ दिखाना जरूरी है. एक बोतल में किसी तरह दो मख्खियाँ, बड़ी मुश्किल से.......क्योंकि मैंने मख्खियाँ कभी पकडी नहीं थी...कोई अनुभव नहीं था. उसने आँखें खोली, मख्खियाँ गौर से देखी. बोतल में बंद है ! मैंने कहा कि भई, देख, निकाल दी ना आखिर हम ने तुम्हारी मख्खियाँ.
उसने कहा कि हुज़ूर मैं तो जानता ही था कि सही जगह आ गया हूँ....अब भनभनाहट भी बंद हो गयी है..मैं आराम से हूँ. और एक अरसे बाद वह चैन की नींद सोया....मख्खियों से...भनभनाहट से निजात जो मिल गयी थी.
जब जागा तो उसने बताया था- "मेरा नाम मुल्ला नसरुद्दीन है."