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ओ विजेता
जीवन समर के,
एक पराजित योद्धा है तू,
पाल लिए हैं
भ्रम जिसने
अचूक निशानेबाजी के,
उदारमना वीरता के,
विलक्षण मेधा के,
प्रभावी व्यक्तित्व के,
कितना मिथ्या है
तेरा अस्तित्व बोध,
सुन जरा !
सिसक रही है
इन शोर भरे
जयकारों के बीच
तेरी अपनी ही
चेतना
और
सम्वेदना,
रख दी है तुम ने
जिनके उदगम स्रोत पर
भारी भरकम
चट्टानें
अपने ही अहम् की....
बेहतरीन ।
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