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कल एक कान्फ्रेंसे में शिरकत की जिसमें अधिकांश फाईनेंस, टैक्स और अकाउंट्स प्रोफेशन के लोग थे॥कुछ वक्ता इतने बोर थे इतने कि मानो किसी कागज़ पर लिखे हर्फ़ और नम्बर्स पढ़े जा रहे हैं, मैं चुप चाप बाहर आकर एक आरामदेह सोफे पर बैठ कर खो गया था..युवाओं का एक दल भी हॉल से बाहर आ गया था..बहुत बातें होने लगी..किसी ने पूछ लिया था यह 'प्रेम' क्या चिड़ियाँ है ? मासटर और बेला बैठा हो, भाषण होना ही था...जो कहा उसे शेयर करना चाह रहा हूँ.... और क्यों ना इस इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट पर चर्चा की जाय।
यह 'प्रेम' क्या चिड़ियाँ है ?
कल एक कान्फ्रेंसे में शिरकत की जिसमें अधिकांश फाईनेंस, टैक्स और अकाउंट्स प्रोफेशन के लोग थे॥कुछ वक्ता इतने बोर थे इतने कि मानो किसी कागज़ पर लिखे हर्फ़ और नम्बर्स पढ़े जा रहे हैं, मैं चुप चाप बाहर आकर एक आरामदेह सोफे पर बैठ कर खो गया था..युवाओं का एक दल भी हॉल से बाहर आ गया था..बहुत बातें होने लगी..किसी ने पूछ लिया था यह 'प्रेम' क्या चिड़ियाँ है ? मासटर और बेला बैठा हो, भाषण होना ही था...जो कहा उसे शेयर करना चाह रहा हूँ.... और क्यों ना इस इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट पर चर्चा की जाय।
यह 'प्रेम' क्या चिड़ियाँ है ?
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दौर था बेताबियाँ का
हावी मेरे दिल पर होने का...
और होता था एहसास
हर लम्हे किसी के ना होने का..
एक तड़फ खार की तरहा
चुभा करती थी,
सोते सोते ही यह आँख
अचानक खुल जाया करती थी..
लगा करता था
सिमट आई है दुनिया
बस दो ही के बीच,
पराई स़ी लगती थी हर शै
बात बेबात आया करती थी
बेमतलब सी खीज..
मायने मोहब्बत के बस लगते थे
पाने की तमन्ना और खोने का डर,
हमें जन्नत से लगते थे
बस उनके ही दीवारों-दर...
कितने आये थे वाकये ऐसे
जिंदगानी में,
किये थे इश्क मैने
ना जाने कितने
मेरी ही नादानी में..
हर नया रिश्ता
अच्छा और सच्चा
लगता था,
और एक अरसे के बाद
फिर मेरी मोहब्बत का
नया अलाव जलता था...
प्रेम क्या है सीखा है मैं ने
मिट कर इन
आधे अधूरे रिश्तो में,
तब तक चुकाया था
ज़िन्दगी को मैने
छोटी बड़ी किश्तों में....
प्रेम है एक स्थिति
हो नहीं सकता कभी भी यह
किसी व्यक्ति विशेष तक सीमित,
विस्तार है यह अस्तित्व का
दायरा है इसका अपरिमित..
बहती नदी की धारा सा
निरंतर है यह,
शुद्ध शुभ्र उज्जवल
समय से आगे
अनंतर है यह...
स्वयं स्फूर्त नैसर्गिक
आश्चर्य का समावेश है यह
अलौकिक स्पंदनों का
अदृश्य परिवेश है यह...
बड़ी शिद्दत से इसे
हर लम्हे जीया जाता है
यह वह जाम है जिसे
दीवानगी से पीया जाता है..
डूब कर इसमें
खुद को फिर से पाया जाता है
होता है हासिल होश और
भरपूर जीया जाता है...
दौर था बेताबियाँ का
हावी मेरे दिल पर होने का...
और होता था एहसास
हर लम्हे किसी के ना होने का..
एक तड़फ खार की तरहा
चुभा करती थी,
सोते सोते ही यह आँख
अचानक खुल जाया करती थी..
लगा करता था
सिमट आई है दुनिया
बस दो ही के बीच,
पराई स़ी लगती थी हर शै
बात बेबात आया करती थी
बेमतलब सी खीज..
मायने मोहब्बत के बस लगते थे
पाने की तमन्ना और खोने का डर,
हमें जन्नत से लगते थे
बस उनके ही दीवारों-दर...
कितने आये थे वाकये ऐसे
जिंदगानी में,
किये थे इश्क मैने
ना जाने कितने
मेरी ही नादानी में..
हर नया रिश्ता
अच्छा और सच्चा
लगता था,
और एक अरसे के बाद
फिर मेरी मोहब्बत का
नया अलाव जलता था...
प्रेम क्या है सीखा है मैं ने
मिट कर इन
आधे अधूरे रिश्तो में,
तब तक चुकाया था
ज़िन्दगी को मैने
छोटी बड़ी किश्तों में....
प्रेम है एक स्थिति
हो नहीं सकता कभी भी यह
किसी व्यक्ति विशेष तक सीमित,
विस्तार है यह अस्तित्व का
दायरा है इसका अपरिमित..
बहती नदी की धारा सा
निरंतर है यह,
शुद्ध शुभ्र उज्जवल
समय से आगे
अनंतर है यह...
स्वयं स्फूर्त नैसर्गिक
आश्चर्य का समावेश है यह
अलौकिक स्पंदनों का
अदृश्य परिवेश है यह...
बड़ी शिद्दत से इसे
हर लम्हे जीया जाता है
यह वह जाम है जिसे
दीवानगी से पीया जाता है..
डूब कर इसमें
खुद को फिर से पाया जाता है
होता है हासिल होश और
भरपूर जीया जाता है...
मायने मोहब्बत के बस लगते थे
ReplyDeleteपाने की तमन्ना और खोने का डर....
Prem ki bahut badi paribhasa ko apne bahut aache se aur bahut kam shabdo main vyakat kiya hai.