Friday, November 26, 2010

बापू जिंदा हुए...

देश की बिगड़ी अवस्था को देखते हुए...एक के बाद एक घोटालों का खुलासा, गिरते हुए नैतिक मूल्य इत्यादि इत्यादि ....भारत के लोगों ने सोचा की एक सामूहिक प्रार्थना की जाय..कि महात्मा गाँधी की मूर्ति में भगवान् प्राण फूंक दे...बापू नेताओं को, बाबुओं को, साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों को संबोधित कर उन्हें motivate करे देश हित में काम करने के लिए...बापू से 'धीरजधर' ही अब मार्गदर्शन कर सकते हैं हम सब का...

देश भर में प्रार्थना सभाएं हुई..कश्मीर से कन्या कुमारी तक, कटक से अटक तक..सभी ना कहा, "हे प्रभो ! करदो दिल्ली में लगी बापू की मूर्ती को जीवित...मिल सकें हमें सद्प्रेरण एवं मार्ग दर्शन...बापू सब से पहले एड्रेस करें हमारे सांसदों, मंत्रियों एवं नईदिल्ली में बसे संतरियों को...और फिर पद यात्रा करे भारत की..जान जागरण के लिए."

प्रभु ने प्रार्थना सुनी, स्वीकारी और गाँधी की प्रस्तर प्रतिमा में प्राण फूंक दिए..
गांधीजी जिंदा हो गए..लगा की बापू अपने सद्वचनों से सबके सोये ज़मीर को जगायेंगे....मगर यह क्या गाँधी बाबा ने अपने लाठी उठाई और अपने सिर के ऊपर से जोरों से घुमाने लगे....कोवें-कबूतरों ने बापू जैसे धीरजधर को बहुत सताया था..बापू ने पहला काम यही किया था की उन से निपटा जाये.

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