(यह रचना भी कोई पच्चीस साल से ज्यादा पहले की है.)
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तेरे मेरे शब्दों में ऐ सुन,
मेरा तेरा बिम्ब हो गया,,,,,
अनुगूँज हुई गीतों की मेरी
धरा-गगन एकत्व हो गया,
तेरे वाचन मात्र से साथी
निराकार साकार हो गया,
समा गया मेरे 'मम' में 'त्वम'
घटित त्वरित 'वयम' हो गया,,,,
तुझ से मैंने जो कुछ मैंने पाया
क्यों मैं उसको तेरा समझूँ,
जो प्रतिदान सहज स्फूर्त है,
क्यों मैं उसको मेरा समझूँ,
कागज कलम मसी सम्मिलन
अनजाने में काव्य हो गया,,,,,
तू ना होती जो संग मेरे
कैसे शब्द भाव पा जाते,
तेरी मुस्कानों बिन, ए सुन
कैसे स्वतः गीत बन जाते,
तेरे सूने नयन देख कर
दर्द भी मेरा सगा हो गया,,,,,
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