# # # #
किस प्याले की
अब क्या बात करूँ....
खूब पिलाया
जब तक मन था
अधरों पे खिला
शब्दों का चमन था,
सच कह उठी
जिस दिन यह जुबाँ थी
उस दिन की
अब क्या बात करूँ ....
छलका था मैं
मय बन कर
मदमस्त किया
हर शै बन कर
जीवन में
कितनी रंगीनी थी
उस मदहोशी की
अब क्या बात करूँ ......
टूटे थे ख़्वाब
देखा जग कर
ज्यूँ फूल गिरे
पत्थर बन कर
पलकों से गिरा
ठुकराया गया था
उस ठोकर की
अब क्या बात करूँ...
हाला से भरा था
वो प्याला
और जख्म ढके था
वह छाला
फूट पड़ा और
बढ़ गयी जलन थी
उस टीस की
अब क्या बात करूँ...
नयनों का था
वो प्याला,
छलक पड़ा था
मतवाला,
था दिल से
जो खिच कर आया,
उस आब की
अब क्या बात करूँ...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment