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प्रेम की अगन
मगन ह्रदय में
ह़र पल जो दहकेगी...
राख से ढकी हुई
चिंगारी,
तेज़ हवा की है
बलिहारी,
नभ पर चढ़कर
इठलाऊं मैं
चाह यही रखती
मतवारी,
बुलंद इरादे रहे
अगर तो
निश्चित वह लहकेगी...
आती रहती खिज़ा
बेचारी
हरियाली पर होकर
भारी,
माली जो गर
देखे सींचे
खिलती जाती
हर फुलवारी
हो मौजूद
वुजूद बहार का
कोयल तो चहकेगी.....
थक गयी है यह घोर
निराशा
चुस्त दुरुस्त मगर है
आशा,
पी कर अमृत
निज विश्वास का,
रहेगी कायम
उसकी भाषा,
चाहे जुदा हो
डाल फूल से
बगिया तो महकेगी...
आँखें अश्कों से है
भरती
हंसी होठों पर फिर भी
सजती
चाहे कड़के
तड़ित बिछोह की
मिलन वृष्टि तो होती
रहती
सच तो यह कि
मौन स्वरों में
रागिनी तो गह्केगी...
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