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Baaten Vinesh Ki
Tuesday, November 6, 2012
अनायास...(आशु रचना)
# # #
आस
और
प्यास
हुई थी
घटित
अनायास,
गिर गए थे
आवरण
जीते थे
एहसास,
तुम और मैं
बन गए थे
हम,
नीचे थी
जमीं
ऊपर
आकाश !
Thursday, November 1, 2012
सम्पूर्ण विलय .....
# # #
मिलना होता है
नदिया को
अपने प्रीतम से
समा के उसी में
बन जाती है
'वो' ही,
होता है
प्रवाह उसका
उसी दिशा में
जहाँ होता है
स्थिर सा
व्याकुल प्रेमी
उसका,
किन्तु आकर
समीप उसके
बाँट लेती है
स्वयं को
कई धाराओं में,
लेना चाहती हो स्यात
थाह उस अथाह की
पूर्व सम्पूर्ण विलय के..
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Vinesh
Padhta hun, padhata hun, khud ki khoz ke safar men hun.
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