Sunday, January 1, 2012

झीना सा अंतर...

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पत्ता
यदि झर गया
नहीं मानेगा
सत्ता पेड़ की,
हरा भरा दरख्त
क्यों कर
स्वीकारेगा
वुजूद
झरे पत्ते का,
बस
झीना सा अंतर
पत्ता वही
पेड़ वही
देखो ना
विगत का सापेक्ष
कैसे बन जाता है
आज का निरपेक्ष !

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