# # # #
प्यास से मरते
इंसानों को
दे देते हैं
तस्वीर दरिया की,
टांग कर उसे
अपनी दरकी हुई दीवाल पर
करते हैं वे बस इंतज़ार
लहर के आने का...
सर्दी से
ठिठुरते बन्दों को
देकर
तस्वीर जलती आग की
पा लेते हैं निजात,
रख कर जलावन पर उसको
करते हैं बस वे इंतज़ार
लपट के उठने का...
रूह में तड़फ हो जिन के
थमा देते हैं उनके
हाथों में किताबें,
कानों को तकरीरें
और
दिलो दिमाग को
झूठे सच्चे टोटके,
पढ़ पढ़ कर
सुन सुन कर
अपना कर जिनको
करते है वे बस इंतज़ार
सुकून के चले आने का...
रोटी कपडा मकान
तालीम सेहत
और
रोज़गार
देने के नाम
थमा देते हैं
ऐलान और नारे
इन्तेखाबत और इन्कलाब के,
करने लगती है
पब्लिक इंतज़ार
चूल्हे से आती रोटी का,
मशीन से आते पैरहन का
गारे सीमेंट से बनते मकां का,
स्कूल, कारखानों और असपताल का..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment