(जर्मन कवि गोएथे की एक प्रसिद्ध कविता का भावानुवाद)
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गँवा दोगे तुम
यह दिन
मटरगश्ती में
होगी कल की भी तो
यही कहानी
और होगा
अगला दिन भी
ऐसा ही
बल्कि
और ज्यादा...
अनिर्णय की
प्रत्येक अवस्था
करती है
उत्पन्न
विलम्ब अपने ही
और
नष्ट होते जाते हैं
दिन
करते हुए
विलाप
खोये हुए
दिनों के लिए....
हो ना तुम
अंतकरण से
कृतसंकल्प
दृढ प्रतिज्ञ
एवं
निष्ठावान,
पकड़ लो ना
कस कर
इसी पल को
अभी यहीं से...
निहित है
सुस्पष्टता
एवम
निर्भीकता में
प्रतिभा
सामर्थ्य
एवं
जादू सा असर....
हो जाओगे
मात्र अनुरत तो
पा लेगा
ऊर्जा
उत्साह की
मनोमस्तिष्क तुम्हारा,
तुम करो ना
प्रारंभ तो,
हो जायेगा
निश्चित ही
सम्पूर्ण
कृत्य तुम्हारा....
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