Sunday, June 7, 2009

गूंजता हुआ सा प्रत्युत्तर ...

आसान है जगाना
एक सोये हुए बन्दे को
मुश्किल है जगाना
एक जागे हुए
भटके इरादों वाले इन्सान को
जो बन जातें हैं
जान कर अनजान
इल्म कैसे बन सकता है
उनका मेहमान.............

आपाधापी को मान कर
अपना धरम
गिरा देतें है वे
सारे लिहाज़ और शर्म,
भला है उनसे तो
सूना सूना सा जंगल
जो आवाज़ लगाने से
देता है कम-से-कम
एक गूंजता सा प्रत्युत्तर.............

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