Saturday, June 6, 2009

बाबाजी का भजन -राजस्थानी लोक कथा

कविताओं के अर्थ कभी कभी कुछ के कुछ लग जातें हैं . कभी मनोरंजन होता है और मायनों में सरलता ना हो तो कभी कभी व्यर्थ विवाद का भी जन्म हो जाता है. मगर हकीकत यह है की लिखने वाले के अर्थ तो होतें ही है, अलग अलग पढने या सुनने वालों के मायने भी अलग अलग हो जाते हैं. एक तो यह मायनों वाली बात आई थी ख़याल में और दूसरे- मेरी एक पेशकश, जिसमें मैं किसान बन जाने की तसव्वुर करता हूँ , उसमें मेरे परम प्रिय भांजे स्वपनिल उर्फ़ आतिश उर्फ़ गज़लोंवाले ने गन्ने के खेत को तारांकित (* मार्क) किया था तब भी इस राजस्थानी लोक कथा की याद ताज़ा हो गई थी जो मैने (शायद अंकित भाईसा ने भी) अपनी नानिसा से सुनी थी . फिर इसको थोड़े रूपांतर के बाद कहीं पढने का मौका मिला तो सोचा क्यों ना आप से शेयर किया जाये.

पेश-ए-खिदमत है, "बाबाजी का भजन." जिसे अलग अलग बन्दों ने अलग अलग तरहा से समझा.

एक साधू-बाबा अपने चेले के साथ चले जा रहे थे. मार्ग में उन्होंने एक गन्ने का खेत देखा. रस-भरे गन्नों को देख कर बाबाजी और चेले के मुंहों में पानी आ गया. बाबाजी चेले से बोले- “यह झोली ले जाओ, इसमें गन्ने भर कर ले आओ.”

गुरु चेले दोनों ही चतुर-चालाक थे. चेला खेत में गया और गन्ने तोड़ने लगा और बाबाजी बाहिर खड़े पहरा देने लगे. अचानक खेत का मालिक जाट अपने खेत्मजूरों
के साथ आ टपका. सभी के हाथ में तेल पियाई लाठियां थी. बाबाजी घबराए, चेला अगर गन्ने तोड़ता हुआ धरा गया तो उसकी धुनाई हो जाएगी. गुरु ने चिंतन किया, अब तो चतुराई से काम लेना होगा. बाबाजी ने अपने जोगिया सुर में भजन गाना शुरू कर दिया :

“संत पकड़ लो संत पकड़ लो आ गए डंडाधारी !”

मधुर गले से इस भक्तिगीत का गान सुन कर जात गद-गद हो गया और उसके कारिंदे भी.
वे लोग रुक गए और बाबाजी को दंडवत किया…तन्मयता के साथ बाबाजी का भजन सुनने लगे. बाबाजी के गान का एक अर्थ जाट और उसके संगी सुन रहे थे तो दूसरा अर्थ चेला सुन रहा था. उपरोक्त पंक्ति को सुन कर जाट को लगा कि “संसार से यदि मुक्ति पानी हो तो संत को पकड़ लो, अर्थात संतों का सत्संग करो. डंडाधारी अर्थात यम के दूत आने वाले हैं.”
चेले ने समझा, “डंडेधारी कारिंदों के साथ खेत का मालिक जाट आ गया है, इसीलिए गन्ने जल्दी जल्दी भरो."

बाबाजी ने दूसरी पंक्ति गई, “ लम्बे हो तो छोटे करलो, करलो गुप्ताधारी.”

इस पंक्ति को जाट ने समझा, “ तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर का मार्ग बहुत लम्बा है. संत-समागम से उसे छोटा करलो.” चेले ने समझा, “गन्ने अगर बड़े हैं तो छोटे करलो.”

बाबाजी ने तीसरी पंक्ति गई, “ चरणदास की मार पड़ेगी पूजा होसी भारी.”

जाट ने समझा, “यदि तुम संतसमागम नहीं करोगे और दुष्ट बने रहोगे तो तुम्हे जूते (चरणदास) पड़ेंगे.” चेले को उनकी चेतावनी थी की, “ ज्यादा देर करोगे तो चरणदास याने जूते की मार खानी पड़ेगी.”

बाबा ने सोचा, चेला अभी तक तो आया ही नहीं, उसको समझाने के लिए चौथी पंक्ति गायी, “ अन्दर पूजा होसी थारी, बाहर होसी म्हारी.”

जाट ने समझा, “यदि भगवान की भक्ति नहीं करोगे तो नरक में तुम्हारी दुर्गत होगी और बाहर संसार में भी.” चेले ने समझा, “समय बहुत हो गया है, जाट और उसके कारिंदे अन्दर तुम्हे पीटेंगे और बाहर मुझ को (बाबाजी को).”

चेला था बहुत चालू बन्दा, उसने जल्दी से दस बारह गन्ने उखाड़े और उनके टुकड़े टुकड़े कर के झोली में भरे, बाहर निकलने की तैयारी में ही था कि इतने में बाबाजी ने गया,
“राम नाम को जप कर चेले टप ज्या परली क्यारी.”

इस पंक्ति को जाट ने समझा, “ तुम राम नाम की नाव लेकर भवसागर से पार हो जाओ.”
चेले को चेतावनी थी कि, “अब खतरा बहुत बढ़ गया है, इसलिए राम नाम का सुमरिन करते हुए दूसरी क्यारी से बाहर चले जाओ इस तरफ आएगा तो जाट पकड़ लेगा.”

चेला झोली लेकर बड़ी चतुराई से बाहर आ गया. जाट को बिलकुल एहसास नहीं हुआ की गुरु-चेले ने मिलकर भजन की आड़ में गन्नों की चोरी कर ली है.

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