Saturday, June 6, 2009

फर्क.....

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एक कुँवा
एक तलैय्या
भाई बहन,
बतिया रहे थे
दिन एक:
जल तो है
दोनों में ही,
फर्क फिर कैसा ?

सुनी थी
पनहारिन ने
कानाफूसी
दोनों की,
लगी कहने
पनहारिन
चाहिए एक को
रस्सी लम्बी स़ी,
और
दूजी को
विनम्रता,
बस थोड़ा सा
झुक जाने की.....

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*मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
कुंडे कुंडे जलंचः....

(संस्कृत की इस उक्ति का अर्थ है, प्रत्येक मस्तिष्क में अलग अलग बुद्धि होती है, प्रत्येक कुंड में अलग अलग जल.)

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