एक कुँवा
एक तलैय्या
भाई बहन,
बतिया रहे थे
दिन एक:
जल तो है
दोनों में ही,
फर्क फिर कैसा ?
सुनी थी
पनहारिन ने
कानाफूसी
दोनों की,
लगी कहने
पनहारिन
चाहिए एक को
रस्सी लम्बी स़ी,
और
दूजी को
विनम्रता,
बस थोड़ा सा
झुक जाने की.....
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*मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
कुंडे कुंडे जलंचः....
(संस्कृत की इस उक्ति का अर्थ है, प्रत्येक मस्तिष्क में अलग अलग बुद्धि होती है, प्रत्येक कुंड में अलग अलग जल.)
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