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(रोजाना की जिन्दगी में आप और हम बहुत कुछ observe करतें हैं. Observation करीब करीब हम सभी के होतें हैं. इस series का नाम ‘Observation series’ देना चाहता हूँ अर्थात :’प्रेक्षण श्रृंखला’. बहुत छोटे छोटे observations को शब्दों में पिरो कर आप से बाँट रहा हूँ……नया कुछ भी नहीं है इन में बस आपकी-हमारी observe की हुई बातें है सहज स़ी…साधारण स़ी. आप पढ़ चुके हैं इस श्रृंखला की कुछ और कवितायेँ इस से पूर्व भी.)
वो एक चिन्तक एवं साहित्य सृजक थे....अपने 'टार्गेट' को कहा करते थे :
प्यासी रही रूह मेरी
मोहब्बत का
आब ना मिला
खुली रही आँखें मेरी
वस्ल का
ख्वाब ना मिला..
सूखी सूखी स़ी रही
जिंदगानी मेरी
मुझ बदकिस्मत को
तुझ स़ी देवी के प्यार का
शैलाब ना मिला
रहे तरसते ताउम्र
ऐ आरजू मेरी
हमें अपनी चाहत का
माकूल एक हिसाब ना मिला...
पड़ते ही कदम तेरे
आने लगी बहारें
इस उजड़े चमन में
अब तक कभी जिसको
सुकूं का हसीं एक
महताब ना मिला..
मैं तो चाहता हूँ
बस रूह को तुम्हारी
जिस्म की बातें है जानम
मुझ पे बेमानी
खुश रहे तू संग
अपने पिया के
रास आई बस मुझको
तेरी मोहब्बत रूहानी...
तुझ सा ना देखा मैने
कायनात में.. सच जानो
जनमों का रिश्ता है अपना
प्रिये बस तुम ही जानो....
यूँही बरसाती रहो अमृत
सहरा से मेरे जीवन में
देखा करूं मैं अक्स अपना
तेरे दिल के उजले दर्पण में ...
'प्लेटोनिक' है इश्क मेरा
ऐ महबूबा अनूठी
कैसी ज़माने की रस्मे
करेगी क्या 'बंधन' की अंगूठी...
करूँगा मैं पूजा तेरी
बना मूरत मन मंदिर की
आत्मा का हूँ पुजारी
नहीं तरस मुझे शरीर की..
मेरी कविताओं के
भीगे भीगे से भाव तुम हो
मेरी सोचों का सुमधुर
बहता हुआ सा
शीतल श्राव तुम हो....
परे है संसारिकता से
सम्बन्ध प्रिये हमारा
पवित्र बस पवित्र है
अनाम अनुबंध हमारा...
था इंतज़ार मुझको
तुझ सा हसीं कोई मेरी
ज़िन्दगी में आये
खुशियाँ बस खुशियाँ
बस हरसू भर जाए...
देखा गया था :
बातें ऐसी कहना
आदत थी उनकी
दोगली हरक़तें
शहादत थी उनकी...
गदराये जोबन को देखती थी
ललचाई आँखे उनकी
हसीनों को देख कर
खिल जाती थी बांछे उनकी...
बदसूरत शक्ल को
ओढाया करते थे
चद्दर नज्मों की
थोथे कहकहे उनके
बनते थे रौनक बज्मों की...
रूह तक जाने की बातें
होती थी
जिस्म पाने का बहाना
हर पखवाड़े शुरू होता था
उनका नया एक फ़साना....
अलफ़ाज़ के जाल में
वो चिड़ियाँ को फँसाते थे
बातों की लफ्फाजी से
उसको रुलाते और हंसाते थे....
व्हिस्की रम वोदका
उनकी मस्ती को बढ़ाते
कोकीन सूंघते या
थे भंग वो चढाते...
नशा ऐय्याशी का और
नाम था अदब का
बहुरूपिये उस अदीब का
ढीठपन था गज़ब का...
ना जाने कितनों को छेड़ा
कितनों की चप्पल खायी
सब होने के बावजूद
उनको अक्ल ना आयी...
मीठी बातें करके
लड़की बहलाते थे
कलम के वे मजनूं
आशिक पैदायशी कहलाते थे...
झूठ बस झूठ का
लेते थे वो सहारा
दूजों का आगे बढ़ना
ना था उन्हें गवारा...
किताबी बातें मानों
चेहरे का उनके मुल्लम्मा थी
उनकी नज़रों में जवानी की
बस जलती हुई शम्मा थी..
जलसों में शिरकत करते
खिताब भी बटोरते
टुच्चे थे जनाब इतने कि
किसी को ना छोड़ा करते...
पाखंडी शायर की
बातें थी निराली
मुंह में था कलमा
हाथ में 'देशी' की प्याली...
बाहर से कुछ थे जनाब
बातें अन्दर की थी दूजी
हमाम के वे भोंडे नंगे
नहाते थे माडर्न जाकूजी....
मैने सोचा और कहा था :
बच के रहना यारों
इन जलील दोजख के कीड़ों से
अंतर बनाये रखना
मत खो जाना इनकी भीड़ों में....
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