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कच्ची कली फूल में देखो बदल गयी
भंवरे की बात वो सारी समझ गयी,
देखो ना मौसम का करिश्मा गज़ब
कोंपल थी के शज़र वो सरमस्त हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
पाजी हवा बार-बार देखो सता गयी
हर झोंके से वो तो चिलमन हटा गयी
आसमां में उम्मीदों को पसार गयी
सिफ़र एक सब से बड़ी दौलत हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
तशनगी जिस्म की ज्यूँ जेठ की धरती
सदियों सदियों से थी मानो जैसे परती
प्रीत मेघ की एक बौछार से बूँद तृप्त हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
महंगा होता है हंस हंस के बतलाना
लोगों के दिलों का तो जलना जलाना
बिना बात के कित्ती बातें बनाना
किरकिरी आँख की परबत हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
(बरकत=वैफल्य, बढती. सरमस्त=उन्मत/मदोंमत. सिफ़र=शून्य)
(मूल रचना राजस्थानी में कल्याण सिंह जी राजावत की है, मैंने इसे हिन्दुस्तानी (हिंदी/उर्दू मिश्रण) में रूपांतर/भावानुवाद करके पेश करने की कोशिश की है..)
कच्ची कली फूल में देखो बदल गयी
भंवरे की बात वो सारी समझ गयी,
देखो ना मौसम का करिश्मा गज़ब
कोंपल थी के शज़र वो सरमस्त हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
पाजी हवा बार-बार देखो सता गयी
हर झोंके से वो तो चिलमन हटा गयी
आसमां में उम्मीदों को पसार गयी
सिफ़र एक सब से बड़ी दौलत हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
तशनगी जिस्म की ज्यूँ जेठ की धरती
सदियों सदियों से थी मानो जैसे परती
प्रीत मेघ की एक बौछार से बूँद तृप्त हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
महंगा होता है हंस हंस के बतलाना
लोगों के दिलों का तो जलना जलाना
बिना बात के कित्ती बातें बनाना
किरकिरी आँख की परबत हो गयी
देखो ना बीज में बरकत हो गयी...
(बरकत=वैफल्य, बढती. सरमस्त=उन्मत/मदोंमत. सिफ़र=शून्य)
(मूल रचना राजस्थानी में कल्याण सिंह जी राजावत की है, मैंने इसे हिन्दुस्तानी (हिंदी/उर्दू मिश्रण) में रूपांतर/भावानुवाद करके पेश करने की कोशिश की है..)
Mool aalekh :
बीज में बरकत होगी रे.
(कवि : कल्याण सिंह जी राजावत)
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कळी फूल में बदळगी,
भंवराँ री सा बात समझगी,
देखो रुत रो एक अचंभो,
दोबड़ी दरखत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे.
नुगरो पवन कुचरणीगारो,
हर झौंके निरखै उणियारो,
आसा रो आकास पसारयो,
निजर तो सरवत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
तन री तिरस् जेठ री धरती,
जुगाँ जुगाँ स्यूं रेहगी परती,
प्रीत-मेघ रै एक हबोलै,
बूँद स्यू तिरपत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
मूंघो होवे हंस बतलाणों,
लोगाँ रे बिच कुबद कमाणों,
देखो जग़ रो बात बणाणों,
कांकरी परबत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
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कळी फूल में बदळगी,
भंवराँ री सा बात समझगी,
देखो रुत रो एक अचंभो,
दोबड़ी दरखत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे.
नुगरो पवन कुचरणीगारो,
हर झौंके निरखै उणियारो,
आसा रो आकास पसारयो,
निजर तो सरवत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
तन री तिरस् जेठ री धरती,
जुगाँ जुगाँ स्यूं रेहगी परती,
प्रीत-मेघ रै एक हबोलै,
बूँद स्यू तिरपत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
मूंघो होवे हंस बतलाणों,
लोगाँ रे बिच कुबद कमाणों,
देखो जग़ रो बात बणाणों,
कांकरी परबत होगी रे,
बीज में बरकत होगी रे !
कांकरी= ढेला.)