Tuesday, June 7, 2011

सो जा मेरी वृथा कल्पना सो जा..

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देखो ना
यह रात ढाल चुकी
घड़ियाँ कितनी
रही है बाकी,
वीरां पड़ी है
मधुशाला अब
दगा दे गयी
तेरी साकी,
किन किन बातों में
उलझा तू,
सो जा मेरी
वृथा कल्पना सो जा..

मीठे स्वर में
लोरी गाकर
जग ने तुझे
सुलाना चाहा,
मस्त अदाओं से
रीझा कर
अपना तुझे बनाना चाहा,
सो ना सका था
तू एक प्यासा
सुखद स्पर्श का ,
अनुभूतियों को
भूल भाल कर
सो जा मेरी
सजग चेतना सो जा...

पीकर विस्मृति के
तू प्याले,
रोक कटु समृतियों के
ये काफिले,
अंत कर दो
इस दुखद सफ़र का
कर सदुपयोग
इस शेष प्रहर का,
थपकी देकर
तुझे सुलाता,
सो जा मेरी
ह्रदय वेदना सो जा...

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