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जो भी हुआ अच्छा हुआ ख़त्म कहानी हो गयी.
ठोकरें खायी हजारों,मायूस हुआ जो दिल ही था
सरे राह कोई मिल गया, ऐसे जौलानी हो गयी.
अश्क तेरे गिर पड़े थे, हुए जुदा थे हम जिस पल
सफ़र मेरे उस बेमंज़िल में, एक निशानी हो गयी.
संग रकीब का रास आया तो खुश थे तुम बेइंतेहा
क्या हुआ जब भी देखा हम को नम पेशानी हो गयी.
छुप छूप कर आना वो तेरा लखना मेरी बदहाली
कहने को बर्बाद हुए हम, हसीं जिंदगानी हो गयी.
(जौलानी=फुर्ती/चपलता)
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