अरे नादाँ,
सुनो रे
अश्रु यादों के,
लौट चल फिर से
अंतर में
भूला अम्बार
वादों के...
फूल के
प्राण सत्वों को
दुनियां
नोच कर
मसल डालेगी,
तुम्हारे दर्द की
खुशबू
सभी को
मचल डालेगी,
बढ़ा चल
मत भटक राही
बुलंदी ला
इरादों में,
लौट चल फिर से
अंतर में
भूला अम्बार
वादों के...
क्यूँ ढूंढता है तू
वो खोयी
लुत्फ की घड़ियाँ,
यादों की जंजीरें
बन गयी
बेड़ियाँ और हथकड़ियां,
डुबाता है क्यों
खुद को
भूत के वृथा
प्रमादों में,
लौट चल फिर से
अंतर में
भूला अम्बार
वादों के...
अनन्त की
सीमा का
नहीं होता
कोई भी किनारा है,
अंधेरों का
सदा साथी
रहा करता उजियारा है,
तत्व को पहचान
तू बन्दे
क्यों उलझा है
स्वादों में,
लौट चल फिर से
अंतर में
भूला अम्बार
वादों के...
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