सत्य
नग्न
रहने दो मित्रों !
औढाओ ना
उस पर आवरण,
सत्यम
शिव सुन्दर लगेगा
हो, ना हो चाहे
आभरण...
क्रांतिपुरुष
बढ़ जाओ आगे
पीछे चलेंगे
कोटि चरण,
हैं बुलंद
हमारे इरादे
विजय करेगी
अपना वरण..
क्यों झुकेंगे
समक्ष तेरे
हम को बस
उसकी शरण,
प्राण लिए हैं
हम हथेली
हम को क्या अब
जीवन मरण..
देश हित की
लौ लगी है
दृढ रहेंगे
आमरण,
शहादत की
आकांक्षा हम को
वही तो है
भावसागर तरण...
नग्न
रहने दो मित्रों !
औढाओ ना
उस पर आवरण,
सत्यम
शिव सुन्दर लगेगा
हो, ना हो चाहे
आभरण...
क्रांतिपुरुष
बढ़ जाओ आगे
पीछे चलेंगे
कोटि चरण,
हैं बुलंद
हमारे इरादे
विजय करेगी
अपना वरण..
क्यों झुकेंगे
समक्ष तेरे
हम को बस
उसकी शरण,
प्राण लिए हैं
हम हथेली
हम को क्या अब
जीवन मरण..
देश हित की
लौ लगी है
दृढ रहेंगे
आमरण,
शहादत की
आकांक्षा हम को
वही तो है
भावसागर तरण...
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