Thursday, April 15, 2010

शाद्वल (Oasis)......

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यह मरुस्थल ही है,
तुम नहीं !
तुम नहीं !

क्यों बना ली है
पहचान अपनी
इस मरुस्थल की
तपिश सी,
सूखापन,
बिखरी सीआशाएं,
चीखते सन्नाटे,
प्यासा मन,
अकेलापन,
सब कुछ तो
इसीका है,
इसी धूल और
आंधी भरी
मरुभूमि का,
तुम्हारा तो
कत्तई नही........

तुम तो हो
निखिलिस्तान
रेगिस्तान मे,
आकर जहां
कोई पथिक प्यासा
पा लेता है
घनी छाँव,
शीतल जल
बुझाने को प्यास
अपने मन की.........

सुनहरी आशाएं,
मधुर गीत
सुहाती सोचें,
स्नेह के झरने,
एकांत के एहसासों से
उपजा सुकून,
साश्वत सत्यों से
आलिंगन,
जीवन की सार्थकता से
परिचय,
सभी तो है
तुम्हारे अंतर में,
जिन्हें ना जाने
क्यों ढांपना
चाहती हो
मरुस्थल की
सूखी रेत से .......

सभी बंद आँखोंवाले
घिरे हुए हैं
मरुस्थलों से,
मृग मरीचिका के सदर्श
प्रलोभन और भ्रम
आरुढ़ है
इन मरुस्थलों पर,
खुले हैं चक्षु जिनके
प्राप्य है
उन्हें आनन्द
शाद्वल का
मरुद्यान का,
वहीँ कुछ दुर्भागी
कर रहे हैं प्राणांत
मरुस्थल कि सोचों में,
मरीचिका के
झूठे एहसासों में,
मिथ्या
मृगतृष्णा में…

दर्पण लेकर
आन खड़ा हूँ
सम्मुख तुम्हारे,
मत पूछो
किसी से,
निर्णय तक
पहुंचना है तुम्हें ,
केवल
तुम्हें,
शाद्वल हो या मरुस्थल ?

(शाद्वल,निख्लिस्तान,मरुद्यान = Oasis)

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