Saturday, April 3, 2010

बेणी........

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गुन्थो ना
फूलों को
बेणी में जानां
हिना की खुशबू
खुद-ब-खुद
दिलकश है...

मैकदे हैं
रुहो जिस्म तुम्हारे
हम तो
बस प्यासे
मैकश हैं...

फूलों से
छुवुं या के
होटों से
कैसी अजब
यह
कशम-कश है...

आगोश तेरा
एक गुलशन सुहाना
खंदा-ए-गुलों में
बहुत
कशिश है.....

भूल जाता हूँ
मैं हस्ती
खुद की,
प्यार ही प्यार है
ना कोई
हविस है.....

सब कुछ
तबीई है
बीच हमारे
है तर्जुमा-ए-तमन्ना
ना के कोई
काविश है....

खंदा=स्मितमुख/स्मायिलिंग, हविस=लालच/वासना, तबीई=नैसर्गिक/प्राक्रतिक, तर्जुमा=अनुवाद, तमन्ना=क्रेविंग, काविश=प्रयत्न.

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