Sunday, May 29, 2011

तख्तियां....

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देखी है
मैं ने
चन्द मजारें
ज़िन्दगी के
इस फैले हुए
मैदान में,
दफ़न है जिन में
ऐसे इंसानों के
ज़िंदा जिस्म
जिन्हें
खुद कातिल ने
बन कर मुंसिफ
मार डाला था
और
देकर रूतबा
शहादत का
लगा दी थी
खूबसूरत सी
तख्तियां,
समझ कर
दरगाहें
चढाते हैं
जिन पर
आज भी
तुम हम
और
वे कातिल,
झुका कर
सर अपने
सजदों में
ना जाने कितने
फूल और चादरें...

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