Friday, July 15, 2011

तरल...(आशु रचना)

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आसान है
ठोस होना,
होती है
वांछा
सभी की
कुछ ठोस
बन जाने की,
ताकि
बार बार
साबित हो सके
अस्तित्व एक
पृथक सा,
दिखें हम
खड़े अलग से
और
ना बदले जा सकें
आसानी से
बिना तोड़फोड़
और
गलाने के,
झुकते नहीं
टूट जाते हैं
हम बहुधा
ठोस बन कर...

सहजता है
हमारी
हो जाना तरल,
हो कर सरल
ढल पाये हम
किसी भी प्रारूप
और
अनुरूप में,
झारी में समाया
जल
बन जाता है
झारी,
भरा जाकर
प्याले में
ले लेता है
आकार
प्याले का,
सरोवर वही
वही सागर
वही तो है
नदिया चंचल,
मूल में रहता है
वह
जल तरल
नैसर्गिक
सहज
सरल...

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