Saturday, July 2, 2011

भंवरा तू भरमाया......


# # #
(यह एक राजस्थानी रचना का रूपांतरण/भावानुवाद है )

यहाँ कहाँ है कोई कमल सा
भंवरा तू भरमाया
पवन महक के पीछे क्यों तू
बांस वनों में आया..

फल फूलों की बात भूल जा,
यहाँ पतों का नहीं काम,
छिद्र कर रहा तू रस खातिर
नहीं मिलना तुझे आराम...

चेत अरे ओ भ्रमर बावरे,
रसिया कुल तू जाया,
नहीं मिलेगा तुझे कमल सा
भंवरा तू भरमाया...

कूट कूट कर भरा है इनमे
गुरूर ऊँच होने का,
खाए रगड़ उपजे अंगारे
ना सोच मेहमां होने का..

मन हिरण के पीछे पीछे
क्यों 'काले कोसां' तू आया,
नहीं यहाँ है कोई कमल सा,
भंवरा तू भरमाया...

भन्न भन्न क्यों करता तू पागल
कर अंतर-अनहद अनुभूत,
भंवरी तेरी है उदास
तू विषय भोग वशीभूत..

कोड़ी के बदले में तू ने
हीरा जनम गंवाया,
यहाँ कहाँ है कोई कमल सा,
भंवरा तू भरमाया...

(काले कोसां राजस्थानी का एक चामत्कारिक एक्स्प्रेसन है..काले याने ब्लेक और कोसां याने दूरी का मील या किलोमीटर जैसा माप : २ मील= १ कोस, इस का प्रयोग दूर दुरूह अनजानी जगह को इंगित करने के लिए किया जाता है..इसे मैने रचना में 'as it is' रखा है.)

No comments:

Post a Comment