Monday, May 2, 2011

मैं नहीं.....

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पहूंचा हूँ
नतीजों पर
ना जाने
कितनी बार,
अपनाया है
दिल के वश हो
मैने
उधार लिया
व्यवहार,
देखा है
किया है
अनुभव
अच्छे बुरे
यथार्थ को,
पाया है
खुद पर
हावी होते
आत्मीय से
दीखते
स्वार्थ को,
फिर भी
ना जाने क्यों
देखते ही
बिम्ब अपना
किसी भी
दर्पण में,
उठा लेता हूँ
हाथ में
टूटे दांतों वाली
ज़र्ज़र
कंघी,
बहाने
बचे खुचे
केश सँवारने के
ताकता रहता हूँ
अक्स
एक अजनबी का
जो
मैं नहीं
मैं नहीं...

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