(राजस्थान में जब उबलता हुआ पारा थर्मामीटर को तोड़ मानो बाहर आने को तत्पर हो, सड़क पर लगभग ऐसा ही दृश्य नज़र आता है, गर्मी की चिलचिलाती दोपहर को.)
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आँधियों ने सताया
बालू के
'धोरों' को,
सुस्ता रहे हैं
बेचारे
लाचार
हैरान
परेशान
सड़क पर
लेट कर,
पसारे हुए
अपनी लम्बी सी
गर्दन,
और
चमकता हुआ
तपता हुआ
डामर
लगता है
जैसे हो
इस विशालकाय
जन्तु के मुंह से
बहता
गाढा काला खून !
(धोरे राजस्थानी शब्द है टीलों के लिए)
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