अपने को अन्यों से श्रेष्ठ समझने का गुरुर बहुत खतरनाक होता है। ऐसे अहम् को कभी ना कभी ऐसी मार पड़ती है कि सब कुछ नेस्तनाबूद हो जाता है. कभी कभी सच कहने को भी घमंड मान लिया जाता है. हीन भावों से ग्रसित व्यक्ति दूसरों का उत्कृष्ट होना बर्दाश्त नहीं कर पाते, और उनकी उचित बातों को भी अपना नहीं सकते, बल्कि जब भी मौका मिलेगा, उन्हें घमंडी या असामाजिक कह कर अपने हीनता के भावों को टेम्पोरेरी ठंडक पहुँचाने से नहीं चुकेंगे. कभी कभी 'हम को क्या -हमारा क्या' वाली प्रवृति भी सही निर्णय में आड़े आ जाती है. हम अक्सर सही बात कहने के बजाय यह देखने लगते हैं कि किसने हमें पहले 'अप्रोच' किया, कौन हमारी चापलूसी करता है, कौन हमारा अनुयायी बन कर रह सकेगा, कौन हमारे अहम् का पोषण कर सकेगा और हम उचित कहने और करने की बनिस्बत झूठ, कुंठा और फरेब का साथ देने लगते हैं. सच में हम स्वयं 'घमंडी' होते हैं, खुद को अलग बना कर बिना कुछ रचनात्मक या सकारात्मक किये, अपने को ना जाने क्या साबित करना चाहते हैं ? लेकिन होता है ऐसा.
* राजपूताने के एक गाँव में एक बुनकर रहता था. बहुत गरीब था बुनकर. शादी उसकी हो गयी थी बालपन में लेकिन गौना नहीं हुआ था. गौने के बाद बीवी को क्या खिलायेगा इस बात को सोचते हुए, पैसा कमाने के लिए वह शहर चला आया था.
* कुछ पैसा जमा हुआ, बुनकर लौट कर गाँव को चला,रास्ते में एक हामला (गर्भवती) और बीमार ऊँटनी उसको मिल गयी. बहुत तकलीफ में थी बेचारी ऊँटनी.
* बुनकर ले आया उस हामला ऊँटनी को घर अपने. खिलाता पिलाता, सेवा टहल करता. ऊँटनी ने एक बच्चा जाना और चल बसी. बुनकर ने बच्चे का ठीक से लालन पालन किया.
* एक दफा एक चितेरा उस गाँव में आया. उसने बुनकर से ऊंट की पूंछ के बाल अपनी कूंची के लिए लिए. बाल बहुत अच्छे थे, कूची भी अच्छी बनी..और चित्रकार भी सिद्धहस्त..चित्र बहुत सुन्दर बने. चित्रों को राजा-रजवाड़ों-रईसों को बेचने से चित्रकार को खूब दौलत मिली.
* कलाकार ने बुनकर को भी खूब इनाम दिया. बुनकर ने सोचा कि ऊँटों का व्यापार क्यों ना किया जाय. उसने जो ऊंट उसके घर जन्मा था उसको अपने लिए खूब 'लकी' माना. उसको अच्छे से सजाता और उसके गले में एक सुन्दर स़ी तेज़ बजने वाली घंटी भी उस ने डाल दी. अन्य ऊंट जो भी उसके काफिले में होते वे उस ऊंट के सबोर्डिनेट हो कर रहते.
* ऊँटों को इस भेदभाव से बहुत तकलीफ होती थी. उन्होंने कहा भी कि भाई हम तुम जैसे ही तो हैं किन्तु तुम हमें खुद से हीन क्यों समझते हो.
* घंटीधारी ऊंट ने कहा, "तुम साधारण ऊंट हो. मैं अपने से ओछे ऊँटों में शुमार हो कर खुद की इज्ज़त नहीं खोना चाहता."
* घंटीधरी ऊंट, काफिले में हमेशा अलग थलग ही चलता. बाक़ी सब ऊंट समूह में आगे लेकिन घंटीधरी कुछ 'गेप' के बाद पीछे पीछे.
* एक शेर था जी, वह एक ऊँचे से पत्थर पर खड़े हो कर ऊँटों के काफिले पर नज़र रखता था.
* आप तो जानते ही हैं, शेर जब भी शिकार करने के लिए हमला करता है, वह किसी अलग थलग पड़े जानवर को ही चुनता है. घंटी वाले ऊंट की रून-झुन उसके लिए और सहूलियत पैदा कर देती थी..उसको मालूम हो जाता था कि काफिला कहाँ से गुजर रहा है.
* शेर घात लगाये था. घंटी की आवाज़ के सहारे वह घंटीधारी ऊंट के पास पहुँच गया..अलगथलग तो था ही घंटीधारी, दबोचा, मारा और ले आया जंगल को ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर करने के लिए.
* और इस तरह अहंकार ने हमारे घंटीधारी ऊंट की जिंदगानी की घंटी बजा दी थी.
* राजपूताने के एक गाँव में एक बुनकर रहता था. बहुत गरीब था बुनकर. शादी उसकी हो गयी थी बालपन में लेकिन गौना नहीं हुआ था. गौने के बाद बीवी को क्या खिलायेगा इस बात को सोचते हुए, पैसा कमाने के लिए वह शहर चला आया था.
* कुछ पैसा जमा हुआ, बुनकर लौट कर गाँव को चला,रास्ते में एक हामला (गर्भवती) और बीमार ऊँटनी उसको मिल गयी. बहुत तकलीफ में थी बेचारी ऊँटनी.
* बुनकर ले आया उस हामला ऊँटनी को घर अपने. खिलाता पिलाता, सेवा टहल करता. ऊँटनी ने एक बच्चा जाना और चल बसी. बुनकर ने बच्चे का ठीक से लालन पालन किया.
* एक दफा एक चितेरा उस गाँव में आया. उसने बुनकर से ऊंट की पूंछ के बाल अपनी कूंची के लिए लिए. बाल बहुत अच्छे थे, कूची भी अच्छी बनी..और चित्रकार भी सिद्धहस्त..चित्र बहुत सुन्दर बने. चित्रों को राजा-रजवाड़ों-रईसों को बेचने से चित्रकार को खूब दौलत मिली.
* कलाकार ने बुनकर को भी खूब इनाम दिया. बुनकर ने सोचा कि ऊँटों का व्यापार क्यों ना किया जाय. उसने जो ऊंट उसके घर जन्मा था उसको अपने लिए खूब 'लकी' माना. उसको अच्छे से सजाता और उसके गले में एक सुन्दर स़ी तेज़ बजने वाली घंटी भी उस ने डाल दी. अन्य ऊंट जो भी उसके काफिले में होते वे उस ऊंट के सबोर्डिनेट हो कर रहते.
* ऊँटों को इस भेदभाव से बहुत तकलीफ होती थी. उन्होंने कहा भी कि भाई हम तुम जैसे ही तो हैं किन्तु तुम हमें खुद से हीन क्यों समझते हो.
* घंटीधारी ऊंट ने कहा, "तुम साधारण ऊंट हो. मैं अपने से ओछे ऊँटों में शुमार हो कर खुद की इज्ज़त नहीं खोना चाहता."
* घंटीधरी ऊंट, काफिले में हमेशा अलग थलग ही चलता. बाक़ी सब ऊंट समूह में आगे लेकिन घंटीधरी कुछ 'गेप' के बाद पीछे पीछे.
* एक शेर था जी, वह एक ऊँचे से पत्थर पर खड़े हो कर ऊँटों के काफिले पर नज़र रखता था.
* आप तो जानते ही हैं, शेर जब भी शिकार करने के लिए हमला करता है, वह किसी अलग थलग पड़े जानवर को ही चुनता है. घंटी वाले ऊंट की रून-झुन उसके लिए और सहूलियत पैदा कर देती थी..उसको मालूम हो जाता था कि काफिला कहाँ से गुजर रहा है.
* शेर घात लगाये था. घंटी की आवाज़ के सहारे वह घंटीधारी ऊंट के पास पहुँच गया..अलगथलग तो था ही घंटीधारी, दबोचा, मारा और ले आया जंगल को ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर करने के लिए.
* और इस तरह अहंकार ने हमारे घंटीधारी ऊंट की जिंदगानी की घंटी बजा दी थी.
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