(सुपठन,स्वाध्याय,सत्संग एवम स्वचिन्तन के 'प्राप्य' को शेयर करने का सुविचार..जहाँ से मिला उनके प्रति सादर अहोभाव)
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इति
किसी के अथ की
होती अन्य का
अथ भी
सतत काल सापेक्ष
होता गत भी
अनागत भी...
एक ही शब्द
अर्थ पृथक
निर्भर भाव पर
प्रयोग पर,
एक ही प्रश्न
उत्तर भिन्न
है घटित
निर्वचन
संयोग पर...
आस्तिक्य
नास्तिक्य
युगल स्वरुप,
सहज एवं निर्द्वंद,
पक्षी नीड़
नहीं है कारा
देखो कहाँ है
परों पर प्रतिबन्ध...
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