Friday, November 5, 2010

आओं मनाएं आध्यात्म का दीपोत्सव...

महक,
तुम ने चाहा है ना कि मैं इस सन्दर्भ में हुई तुम से चर्चा को शब्द दूँ...प्रयास किया है....यद्यपि तुम सा नहीं लिख पाया...क्योंकि अभी भी मन बहुत से झंझावातों और विकारों से भरा है....मुझे लिखने में आनन्द आया...विषयवस्तु ही ऐसी है, और चाहता था कि तुम इस पर मस्सकत ना करो, लिखने में समय ना लगाओ. बताना कैसा लगा...उचित हो तो बाद में सुधार कर लेना.

अभिव्यक्ति पर पोस्ट कर दिया है.

सस्नेह !
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आओं मनाएं आध्यात्म का दीपोत्सव...
# # #
(१)
हुआ था
प्राप्त
आज के दिन
गणधर गौतम को
केवल ज्ञान,
हुआ था
आज ही
महावीर का
निर्वाण,
महोत्सव है आज
मुक्ति का,
गौतम हुए थे
मुक्त
"मैं" भाव से,
महावीर हुए थे
मुक्त
जीवैष्णा से,
आओ मनाएं
जला कर दीप
उत्सव आज
ज्ञान का
आलोक का
मुक्ति का....
(२)

सन्देश था
वीर का
गौतम को-
हम सब को,
छोड़ दो
सब आश्रय
होतें है जो
अन्यों से,
कर लो
अकेला
स्वयं को
वही है स्वंत्रता..
तभी है
विसर्जन
सब ग्रंथियों का...

(३)
स्वतंत्र है
जीव प्रत्येक,
है स्वामी वह
स्वयं
जन्म का
मरण का,
है वह
विधाता
स्वयं का,
नियन्ता निज का..
करता है
बंधन कर्मों के
स्वयं,
भोगता है
फल उनके
स्वयं,
सुख और
दुःख
होते नहीं
घटित
किसी अन्य के
कारण से,
कोई नहीं
बना सकता
दास किसीको,
हम बनते हैं
दास
खो कर
पहचान स्वयं की,
रहना
अनुकूल
या प्रतिकूल
होता है
निर्णय हमारा,
देते हैं हम
जन्म स्वयं को
और
दिए जाते हैं इसे
निरंतर
लिए बोझ
कर्मों का,
करके प्रमाद
नहीं करते
हैं क्षय
इन कर्मों का,
करते रहते हैं
अकृत्य
मनसा
वायसा
कायसा,
उपरांत
तैर जाने के भी
सम्पूर्ण
भवसागर,
अटक जाते हैं
तट पर
बंध कर
बंधनों से,
चाहते रहते हैं
हम
पहचान अपनी
भीड़ में,
भयभीत हैं
हम
अकेलेपन को
स्वीकारने में,
ऐसे में :
कैसे हों
ज्ञान मय हम ?
कैसे हों
पूर्णत: निर्मल निर्दोष..?
कैसे टूटे
बंधन हमारे ?
कैसे हो
विसर्जन
हमारी समस्त
ग्रंथियों का ....?
करें मनन
इस सन्देश पर :
जिनवाणी का है
संविधान
अपने से
अपना कल्याण !

मेरी पसंद का एक संकल्प...
# # #

एक जैन प्रार्थना है(मेरी रची नहीं है) ...जो इसी के क्रम में है :

ॐ अर्हम
सुगुरु शरणम
विघ्न हरणम
मिटे मरणं...

सहज हो मन
जगे चेतन
करें दर्शन
स्वयं के हम...

बने अर्हम
बने अर्हम
बने अर्हम...

(अर्हम बनने का अर्थ है शुद्ध स्वयमत्व को जागृत कर..भग्वत्व की स्थिति में हो जाना, अध्यात्म कि उंचाईयों पर पहुँच जाना, मौक्ष के लक्ष्य को पा लेना)

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