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# हमारी सोचें हमारे जीने का अन्दाज़ बनाती है. तरह तरह के विचारों को जमा कर के हम जीते हैं. कुछ लोग सकारात्मक होते हैं, ह़र बात में कुछ ना कुछ अच्छा खोज लेते हैं. कुछ लोग उदारमना होते हैं, दूसरों को उनकी फेस वेल्यु पर लेते हैं, और तदानुरूप व्यवहार करते हैं. कुछ लोग बहुत ही संकीर्ण बुद्धि के मालिक होते हैं, दूसरों को बेवकूफ समझते हैं और खुद को होशियार. कुछ लोगों को बहम रहता है कि लफ्फाजी से दूसरों को मेनेज कर सकते हैं. जुबान पलटना, नाटक-नौटंकी करना इनकी फ़ित्रत होती है. ऐसों के अहम् को ठेस जल्दी लगती है, और वे अपने सद इज़हार किये ज़ज्बात और सोचों को भूल कर, बर्ताव में घिनौनापन ले आते हैं. दुनिया पर काबिज़ होने कि बातें करनेवाले ये इंसान बस उलझ कर अपने ही गुलाम बन कर रह जाते हैं.
# तुलसीदास जी ने कहा है, "तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग, सब से हिल मिल चालिए, नदी नाव संजोग."
# संस्कृत की एक उक्ति भी है, "मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना, कुंडे कुंडे जलं चः." अर्थात विभिन्न मस्तिष्कों में विभिन्न प्रकार की मति (बुद्धि) वास करती है जैसे कि विभिन्न विभिन्न सरोवरों में अलग अलग तरह का पानी.
# एक था चूहा, एक थी गिलहरी.
# चूहा चतुर चालाक, स्मार्ट और गिलहरी विचारवान किन्तु सीधी-साधी.
# एक दफा इत्तेफाक से चूहे और गिलहरी का आमना सामना हो गया.
# चूहे ने कहा, " मुझे मूषकराज कहते हैं लोग. मेरे ये पैने दांत है ना लोहे के पिंजर की पत्तियों को काट सकते हैं. मैं किसी भी चीज को काट कर छेद कर सकता हूँ, कुतर सकता हूँ, चाहे कीमती पोशाक हो, या अन्न से भरे बोरे."
# गिलहरी को अच्छा नहीं लगा चूहे का यह दंभ और उसकी करतूतें. बोली, "भाई, इस तरह तो तुम दूसरों का नुक्सान करते हो फायदा नहीं. तुम्हे प्रभु ने जब इतने सुन्दर नुकीले पैने दांत दिये हैं तो इनका सदुपयोग करो, नक्काशी क्यों नहीं करते ?"
# "बहुत बढ़ चढ़ कर बोलती हो तुम गिलहरी", चूहा बोला, "थोड़ा अपने बारे में भी तो बताओ।" चूहा गिलहरी की साफ़ सुथरी बात से खिसिया गया था.
# गिलहरी ने कहा, "भाई मुझ में तुम स़ी कोई खासियत नहीं है. बस जो है ये तीन धारियां है मेरे जिस्म पर जिसको तुम देख रहे हो, बस इन्ही के बताये पैगाम पर मैं जीती हूँ."
# चूहा बोला, "खुल कर बोलो."
# गिलहरी कह रही थी, " दिन भर में मुझे जो दाना पानी मिल जाता है, उनका कचरा साफ़ करके मैं तसल्ली से अपना पेट भर लेती हूँ."
# चूहा कह रहा था, " बाकी तो सब ठीक है. पर तुम्हारी इन तीन धारियों का पैगाम क्या है, जिसका जिक्र तुम ने अभी अभी किया था."
# गिलहरी बोली, "वह तुम्हे मालूम ही नहीं, आसपास दो काली धरिया हैं उनके बीच में एक सफ़ेद है. इसका मतलब है, कि दुःख और कठिनाईयों की परतों के बीच से ही असली सुख झांकता है. दो काली अँधेरी रातों के बीच में ही सुनहला दिन रहता है. हमें बस सद्भाव से अपने सहज कर्म करते रहना चाहिए."
# घमंडी चूहा यह सुनकर शर्मिन्दा हो कर अपने बिल को चल दिया था.
# हमारी सोचें हमारे जीने का अन्दाज़ बनाती है. तरह तरह के विचारों को जमा कर के हम जीते हैं. कुछ लोग सकारात्मक होते हैं, ह़र बात में कुछ ना कुछ अच्छा खोज लेते हैं. कुछ लोग उदारमना होते हैं, दूसरों को उनकी फेस वेल्यु पर लेते हैं, और तदानुरूप व्यवहार करते हैं. कुछ लोग बहुत ही संकीर्ण बुद्धि के मालिक होते हैं, दूसरों को बेवकूफ समझते हैं और खुद को होशियार. कुछ लोगों को बहम रहता है कि लफ्फाजी से दूसरों को मेनेज कर सकते हैं. जुबान पलटना, नाटक-नौटंकी करना इनकी फ़ित्रत होती है. ऐसों के अहम् को ठेस जल्दी लगती है, और वे अपने सद इज़हार किये ज़ज्बात और सोचों को भूल कर, बर्ताव में घिनौनापन ले आते हैं. दुनिया पर काबिज़ होने कि बातें करनेवाले ये इंसान बस उलझ कर अपने ही गुलाम बन कर रह जाते हैं.
# तुलसीदास जी ने कहा है, "तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग, सब से हिल मिल चालिए, नदी नाव संजोग."
# संस्कृत की एक उक्ति भी है, "मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना, कुंडे कुंडे जलं चः." अर्थात विभिन्न मस्तिष्कों में विभिन्न प्रकार की मति (बुद्धि) वास करती है जैसे कि विभिन्न विभिन्न सरोवरों में अलग अलग तरह का पानी.
# एक था चूहा, एक थी गिलहरी.
# चूहा चतुर चालाक, स्मार्ट और गिलहरी विचारवान किन्तु सीधी-साधी.
# एक दफा इत्तेफाक से चूहे और गिलहरी का आमना सामना हो गया.
# चूहे ने कहा, " मुझे मूषकराज कहते हैं लोग. मेरे ये पैने दांत है ना लोहे के पिंजर की पत्तियों को काट सकते हैं. मैं किसी भी चीज को काट कर छेद कर सकता हूँ, कुतर सकता हूँ, चाहे कीमती पोशाक हो, या अन्न से भरे बोरे."
# गिलहरी को अच्छा नहीं लगा चूहे का यह दंभ और उसकी करतूतें. बोली, "भाई, इस तरह तो तुम दूसरों का नुक्सान करते हो फायदा नहीं. तुम्हे प्रभु ने जब इतने सुन्दर नुकीले पैने दांत दिये हैं तो इनका सदुपयोग करो, नक्काशी क्यों नहीं करते ?"
# "बहुत बढ़ चढ़ कर बोलती हो तुम गिलहरी", चूहा बोला, "थोड़ा अपने बारे में भी तो बताओ।" चूहा गिलहरी की साफ़ सुथरी बात से खिसिया गया था.
# गिलहरी ने कहा, "भाई मुझ में तुम स़ी कोई खासियत नहीं है. बस जो है ये तीन धारियां है मेरे जिस्म पर जिसको तुम देख रहे हो, बस इन्ही के बताये पैगाम पर मैं जीती हूँ."
# चूहा बोला, "खुल कर बोलो."
# गिलहरी कह रही थी, " दिन भर में मुझे जो दाना पानी मिल जाता है, उनका कचरा साफ़ करके मैं तसल्ली से अपना पेट भर लेती हूँ."
# चूहा कह रहा था, " बाकी तो सब ठीक है. पर तुम्हारी इन तीन धारियों का पैगाम क्या है, जिसका जिक्र तुम ने अभी अभी किया था."
# गिलहरी बोली, "वह तुम्हे मालूम ही नहीं, आसपास दो काली धरिया हैं उनके बीच में एक सफ़ेद है. इसका मतलब है, कि दुःख और कठिनाईयों की परतों के बीच से ही असली सुख झांकता है. दो काली अँधेरी रातों के बीच में ही सुनहला दिन रहता है. हमें बस सद्भाव से अपने सहज कर्म करते रहना चाहिए."
# घमंडी चूहा यह सुनकर शर्मिन्दा हो कर अपने बिल को चल दिया था.
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