Tuesday, April 12, 2011

बिंदु बिंदु विचार : टांग खीच कर नीचे लाना

आज जो कहानी शेयर कर रहा हूँ, वह मैं अपनी मेनेजमेंट क्लासेज/डेवलपमेंट प्रोग्राम्स में अलग अलग सन्दर्भों में अक्सर सुनाया करता हूँ. नजमा से तो यह कहानी बहुत दफा शेयर हुई है. भारतीय परिवेश में नौकरशाही, ऑफिसों की राजनीति, घर-परिवार एवं समाज में लोगों की प्रवृति को लेकर उसकी जिज्ञासाओं के समाधान के बीच इसका जिक्र आ ही जाता था.

* भारत से 'सी फ़ूड' का निर्यात होता है, कई देशों में. पकेजिंग बहुत अच्छे से करनी होती है. ताकि समुद्री जहाज से 'माल' ठीक से अपनी जगह पहुँच जाये.

* लागत काम करने के उपाय व्यापार में सब जगह सोचे जाते हैं. बिजनेस स्कूल से निकले एक प्रोग्रेसिव फ्रेशर ने एक तरकीब अपनाई.

* उसने तय किया कि क्रेब्स/लोबस्त्र्स (केंकड़ों) को खुले टोकरों में बाहिर मुल्क भेजा जाये. इस से उन्हें ताज़ी हवा मिलती रहेगी, वे तरोताजा रहेंगे, और इसलिए तुलनातमक दृष्टि से अधिक स्वादिष्ट और क्रिस्प होंगे.

* चेयरमेन साहब बुजुर्ग थे, उन्हें पूछ लिया -"तुम पैकेजिंग कोस्ट बचाना चाहते हो, इस सुझाव के कई एक लाभ भी गिना रहे हो. सब ठीक है उपर उपरी, किन्तु भाई ऐसा कैसे मुमकिन हो सकेगा, ये केंकड़े एक एक कर निकल बाहर होंगे, नौजवान मेरी इस शंका का समाधान करो ?"

* नौजवान ने कहा, "सर ये केंकड़े हैं, जब भी इनमें से कोई ऊपर उठेगा, नीचे वाले उसकी टांग खींच कर फिर से नीचे ले आयेंगे, सर! केंकड़े और ऊपर से हमारे देश के, आप बिलकुल फ़िक्र ना करें."

* अनुभवी चेयरमेन साहब कन्विंस हो गए थे.

No comments:

Post a Comment