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बिना कुछ बोले भी
हो सकते हैं
संलिप्त
हम शब्दों में,
और बोलते हुए भी
हो सकते हैं
स्थित
हम मौन में
घटित होता है
जब मौन
नहीं होता वह
अशांत
बोलने से कभी ..
महत्वहीन है
वह मौन
जो हो जाता है
अस्तव्यस्त
प्रक्रिया में
बोलने की ..
नहीं है भय
शाश्वत मौन को
शब्दों का कभी
मौन नहीं है
मात्र
अनुपस्थिति
शब्दों की ...
यह तो है
जीवंत उपस्थिति
'स्व'
'बोध'
और
'प्रेम' की
मौन
बोलता है
तुमसे
गाता है गीत
भर के बाँहों में
तुम्हें
उंडेल देता है
अपनी प्रीत
है ऊर्जा असीम
यह विस्मयकारी
घटित होती है
दिव्यता
आतंरिक और बाहरी
नहीं है निर्वात कोई
बस है अनुभूति
सम्पूर्णता की
मौन के कारण
उपस्थिति
जीवन्तता
और आनंद की
आओ मित्र !!
सीख लें हम
सुनना
मौन की
आवाज़ को
नहीं मात्र
कर्णेन्द्रियों से
अपितु
अपने पूरे शरीर से,
आत्मा से
और
अपने सम्पूर्ण तत्व से
हो कर कृतज्ञ
अस्तित्व के प्रति...
बिना कुछ बोले भी
हो सकते हैं
संलिप्त
हम शब्दों में,
और बोलते हुए भी
हो सकते हैं
स्थित
हम मौन में
घटित होता है
जब मौन
नहीं होता वह
अशांत
बोलने से कभी ..
महत्वहीन है
वह मौन
जो हो जाता है
अस्तव्यस्त
प्रक्रिया में
बोलने की ..
नहीं है भय
शाश्वत मौन को
शब्दों का कभी
मौन नहीं है
मात्र
अनुपस्थिति
शब्दों की ...
यह तो है
जीवंत उपस्थिति
'स्व'
'बोध'
और
'प्रेम' की
मौन
बोलता है
तुमसे
गाता है गीत
भर के बाँहों में
तुम्हें
उंडेल देता है
अपनी प्रीत
है ऊर्जा असीम
यह विस्मयकारी
घटित होती है
दिव्यता
आतंरिक और बाहरी
नहीं है निर्वात कोई
बस है अनुभूति
सम्पूर्णता की
मौन के कारण
उपस्थिति
जीवन्तता
और आनंद की
आओ मित्र !!
सीख लें हम
सुनना
मौन की
आवाज़ को
नहीं मात्र
कर्णेन्द्रियों से
अपितु
अपने पूरे शरीर से,
आत्मा से
और
अपने सम्पूर्ण तत्व से
हो कर कृतज्ञ
अस्तित्व के प्रति...
मौन की इतनी सुंदर परिभाषा पहले केवल शास्त्रों में पढ़ी थी, अस्तित्व गत यह मौन अदभुत है ! आभार !
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