Tuesday, April 5, 2011

हेतु...

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समा जाता
सागर के
गहन
विस्तार में,
बन कर
भगीरथी,
स्राव
और
स्खलन
हिमालय का,
होता है
हेतु
प्रेम,
उदारता
और
उपासना,
ना कि
स्वार्थ,
संकीर्णता
और
वासना...

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