Tuesday, April 12, 2011

बिंदु बिंदु विचार : महापर्व नवरात्र

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* महादेवी की नवाधिशक्ति जब महाशक्ति का स्वरुप धारण करती हैं उस काल को नवरात्र कहा जाता है.

* नवरात्र भारतीय संस्कृति का उदात्त पक्ष है, जिसे अपराजेय भक्ति, जीवन शक्ति एवं अप्रितम अनुरक्ति हेतु श्रद्धा भाव से निष्ठापूर्वक मनाने की परंपरा है.

* नवरात्र पर्व समृद्धि, आत्मोद्धार एवं संवर्धन का द्वार है, जो अनीति, अन्याय का विरोध करने की दृष्टि प्रदान करता है. तभी तो अम्बे के अवतरण की अवधारणा का अन्याय के उन्मूलन से सम्बन्ध है.

* तंत्रागमों में अष्ट शक्तियों का उल्लेख मिलता है. ब्राह्मी (श्रृष्टिक्रिया संचालिका), माहेश्वरी (लय शक्ति संचालिका), कौमारी (आसुरी वृति की संहारक, दैवीय गुणों की रक्षिका), वैष्णवी( श्रृष्टि पालिका), वाराही ( काल शक्ति), नर सिंही (ब्रहम विद्या, रूप, ज्ञान प्रकाशिका), ऐन्द्री ( विद्युत् शक्ति, इन्द्रियों की अधिष्ठाता, जीव कर्म प्रकाशिका), चामुंडा (इन्हें ही दुर्गा कहते हैं जिन्होंने पृवृति रूपी चंड, निवृति रुपी मुण्ड का संहार किया था. यह प्रलय शक्ति है.).

* चामुंडा ने जिन असुरों दैत्यों का संहार किया, वे सभी मानव मन की प्रवृतियों के द्योतक हैं. मोह (महिषासुर), काम ( रक्त बीज), क्रोध (धूम्र लोचन), लोभ( सुग्रीव) , मद (चंड), मत्सर्य (मुण्ड), राग (मधु), द्वेष (कैटभ),ममता (निशुम्भ), अहंकार(शुम्भ). मनुष्य इन्ही सब विकारों से ग्रसित रहता है. अतः नवरात्र के प्रथम आठ तिथियों की उपासना आराधना का आशय यही है कि मनुष्य इन दुर्गुणों के संहार की अभिलाषा करे तथा अंतिम अर्थात नवमी को प्रकृतिपुरुष शिवशक्ति के एकाकार रूप की आराधना कर अपने चिर लक्ष्य की और अग्रसर हो.

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