Tuesday, March 22, 2011

बयान सच्चाई का...(होली २०११)

मेरे पर आरोप है कि मैं अपने लिए लड़की देखने गया था, मुझे मार पड़ी, और मैने हामी भरली, सगाई-ब्याह की.

जरा सोचिये ना 'कोमन सेन्स' और प्रेजेंस ऑफ़ माईंड' से कहाँ से आएगी इस बूढ़े मासटर के लिए कोई लड़की. कोई विधवा, कोई परित्यक्ता-(हो चुकी हो या प्रोसेस में हो) अथवा कोई चिर कुमारी ही तो मिलेगी.


मैं गया था जी घर उनके. वहां मार भी खायी थी. मगर मा कसम मैने सच में हामी नहीं भरी थी.

इन से नेट पर मुलाक़ात हुई थी. इन्हें मालूम हुआ कि मेरे यहाँ फ़िलहाल वेकेंसी है. इनको बहम हो गया कि मैं खानदानी हूँ, रिच एंड फेमस हूँ, हैण्डसम भी हूँ वगेरह. प्रोपोज कर दिया था जी उन्होंने, हमने एक्सेप्ट भी कर लिया. ना उन्होंने हमारा 'पास्ट' पूछा और ना ही हम ने उनके भूतकाल की चर्चा की. बोले थे कि चले आना, बीकानेर के पास अमुक जगह हमारा 'ठीकाणा' है. मिला देंगे आपको हमारे जीसा (पिताजी), और भाईसा(बड़े भैय्या) से. तो साहेब पहुँच गए हम. ठाकर साहब चुन्च थे केसर कस्तूरी ( राजस्थान की प्रसिद्ध मसाले दार शराब) और भाईसा सुबह से ही 'ओल्ड मोंक' को कई दफा आत्मसात कर चुके थे. शाम हुए पहूंचा था मैं जीप ले कर. पर्दा था इसलिए जनाने में तो जाने का सवाल ही नहीं था. इधर ठाकरसाब और कुंवर आपे में नहीं थे. खैर किसी हांळी-बाळदी (कारिन्दा) ने ठहरा दिया था मुझको गढ़ के अन्दर पोळ (gate) के पास वाले एक कमरे में. खा पीकर मैं आया ही था सो कोई टेंसन नहीं था।

जिन बाईसा के लिए आया था, उनके बारे में मैने सुना था, कि वे जवानी में किसी मिरासी संगीतकार पूसा खाँ के प्रेम में पड़ कर मुम्बई भाग गयी थी. कुछ बरस ठीक से गुज़रे थे. फिर बाईसा की रजपूती जाग गयी थी, ढोलीड़ा (मिरासी) अब अवेन्ही लगने लगा था. कुछ तो पूसा खां संगीत के प्रति डेडीकेटेड था और अपने काम के सिलसिले में बहुत व्यस्त रहता था. फिर उसमें वह सोफिस्टीकेशन नहीं था जो बाईसा खोजती थी. बाईसा को यह भी बहम हो गया था की पूसा खाँ का चक्कर एक गायिका से चलने लगा था. बाईसा बेचारी अकेलेपन की शिकार थी. जैसा कि मैने बताया, इस बीच उनकी मुलाक़ात मुझ से इंटरनेट पर किसी सोसल नेटवर्किंग साईट पर हो गयी. मैने भी और उन्होंने भी अपने जवानी का फोटो प्रोफाइल में लगा रखे थे और इसी फंतासी में हम दोनों का इंटरेक्शन होता था, चेट पर. अचानक बाईसा को पूसा खां ने या पूसा खां को बाईसा ने छोड़ दिया. अब मैदान साफ़ था. बाईसा दीपल कुंवर ने तभी तो कहा था,"बन्ना अब सब सेट है, अब चले आओ नी ढोला, पधारो नी म्हारे देश, आकर करलो बात मेरे जीसा भाईसा से. आखातीज (अक्षय तृतिया) के सावे (विवाह मुहूर्त) में दोनों एक दूजे के हु जावेंगे, माताजी महाराज की कृपा से." मैं भी इंट्रेस्टेड था, साथी की ज़रुरत महसूस हो रही थी, सोचा सुवर्ण अवसर आया, क्यों ना गंगा नहा ली जाय.

हाँ तो रात आधी बीत चुकी थी, देखा कोई विशालकाय मानव मेरे कमरे की तरफ बढे जा रहा था। डेनिम जींस और सफ़ेद टॉप चांदनी रात में दिख रहे थे, बाल कटे हुए थे. मैने सोचा कोई बन्ना(ठाकर साब के परवार का कोई जवान) होगा. मैं उठूँ, इतने में ही किसी ने मुझे बाँहों में भर लिया था. मैं खुद को एक मर्दनुमा अधेड़ थुलथुल औरत के बंधन में पा रहा था. ताबड़तोड़ चुम्बन बरसा रही थी वो महिला. मैं समझ तो गया यही है मेरी आशा की पेट्रोमेक्स, मगर ऐसी होगी सपने में भी नहीं सोचा था. बोल नहीं पा रहा था. दम घुटने लगा था, और वह थी की छोड़ ही नहीं रही थी. बरबस मेरे गले से कराहट और फिर चिल्लाहट निकली और उसके बाद वह घटित हुआ जिसका वर्णन आप सब लोगों ने पढ़ा है.

खूब मार पड़ी, यारों मुझ पर. ठाकर कहता-बात पक्की ? कुंवर कहता-"बात पक्की ?" बाईसा भी कहती-"बात पक्की ?" छुटकारा पाने का अब एक ही रास्ता था कि मैं भी कह दूँ -"बात पक्की." खैर जब मेरे मुंह से यह सुना तो मुझे ससम्मान कमरे में बैठाया गया. हल्दी केसर मेवा डाल कर दूध पिलाया गया और कहा की सुबह तिलक करेंगे.मैने बड़ी प्यार भरी नज़र से वीर राजपूतनी दीपल कुंवर को देखा और कहा, "डार्लिंग अब तो ज़िन्दगी पड़ी है. जो मज़ा इंतज़ार में वो कहाँ दीदार में." मेरी भीगी भीगी मोहब्बत भरी नज़र और प्यारे प्यारे बोल सुन कर बाईसा शांत हो गयी और अंदर चली गयी.

साहेब मैने रात तीन बजे जीप स्टार्ट की और भाग चला, देशनोक जाकर किसी देपावत (करणी माताजी के चरण वंशज और पुजारी) के घर में शरण ली और चोरी चोरी दूसरे दिन सुबह जयपुर चला आया.

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